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________________ द्रव्यपरीक्षा सतका समसी, मोमिनी अलाई, सेला समसी, तितीमीसी, कुव्वखानी, खलीफती, अधचंदा, और सिकंदरी समसुद्दीन के पुत्रों की मुद्राएँ - हकुनी, पेरोजसाही, बारहोतरी; रजिया बेगम की रद्दी मुद्रा जिसके दो प्रकार थे एक दिल्ली और दूसरी बदायूँ की टकसाल में ढली हुई ; मउजी मुद्राएं वारहोतरी प्रकार की - नवका और पनका ; सोलहोतरी और पनरहोतरी मुद्राएं तथा छका मुद्रा भी मौजुदीन की ही थी जिनके मोल तोल में सामान्य अन्तर था । * गा. १२५ से १३० पर्यन्त पिरोजसाह के पुत्र अलाउद्दीन, मसूदीसाह की वलवाणी इकंगी, बलवानी वामदेवी और त्रिशूलिक चौकड़िया, सिन्ध प्रान्त के मरोट, उच्च और मुलतान की टकसाल प्रचलित मरोटी, मुलथानी उच्चई और इगानी रोटी का उल्लेख है । सुकारी मुद्रा भी मरोटी इगानो के समकक्ष मोल तोल वाली थी। सीराजी, मुख्तल्फो काल्हणी, नसीरी दिल्ली के टकसाल में ढली हुई थी। इसके बाद दकारी मुद्रा का वर्णन है । गा. १३१ में गयासुद्दीन बलबन की गयासी- दुगानी, मउजी तिगानी, और समसीसा का, गा. १३२ में जलालुद्दीन की जलाली, और हकुनुद्दीन की प्रवर्त्तमान रुकुनी मुद्रा का वर्णन है । गा० १३३ में लिखा है कि अन्यान्य देशों में बनी हुई विविध अज्ञात मुद्राओं को पन्द्रहगुने सीसे के साथ शोध करके तद्गत चांदी के अनुपात से उनका मूल्य जानना चाहिए । १३४ गाथा से १३६ तक ठक्कुर फेरू ने अपने समय में वर्त्तमान सुलतान अलाउद्दीन की मुद्राओं का वर्णन करते हुए बतलाया है कि उसकी छगाणी मुद्राएं दो प्रकार की व इगाणी भी दो प्रकार की हैं। इगानी मुद्रा में ९५ टांक तांबा और ५ टांक चांदी एक सौ मुद्राओं में है । वह एक ही प्रकार की है और राजदरबार में तथा सार्वजनिक व्यवहार में इसी का प्रचलन है । १३७ गाथा में लाया गया है कि हम टंका स्वर्ण मुद्राएं इगतोलिया, पंचतोलिया, दसतोलिया, पचासतोलिया व सौतोलिया होती हैं । दीनार चारमासे को व चांदी का टंका एक तोले का होता है । गाथा १३८ में कहा है कि सहाबुद्दीन की लघु मुद्राएं चार मासे तक को । किन्तु इम्म, छगानी और टंका सभी चांदी सोने की मुद्राएं एक तोले की होती हैं । ठक्कुर फेरू विद्वान, राजनीतिज्ञ और सर्वतोमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति था। वह जैन धर्म के प्रति दृढ़ श्रद्धालु श्रावक था । उसकी रचनाओं के अन्त में उसे 'परम जैन' लिखा है । उसने खरतर गच्छीय वाचनाचार्य राजशेखर के पास जब वह कन्नाणा में रहता था, सं० १३४७ में युगप्रधान चतुष्पदिका की रचना की थी । उस समय उसकी तरुणावस्था थी और उसके बाद वह राजनीति में प्रविष्ट हो कर अलाउद्दीन सुलतान के मंत्रिमण्डल में आया । वह अलाउद्दीन के शाही खजाने का अधिकारी था । वहाँ के रत्नों के अनुभव से सं १३७२ में उसने रत्न- परीक्षा ग्रन्थ का निर्माण किया। अलाउद्दीन का देहान्त हो जाने पर सं० १३७३ में वह संभवतः उसके उत्तराधिकारी बंदिछोड़ विरुद Aho! Shrutgyanam
SR No.034194
Book TitleDravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1976
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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