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________________ ( ६० ) में एक, और अधिक लम्बाई वालों के दो-मध्य से कुछ अन्तर पर दाई और बाई ओर एक एक-छिद्र किये जाते थे । इन छिद्रों में सूत्र पिरो कर गांठ दे देते थे। सातवीं शताब्दी में ह्यनच्सांग लिखता है कि लिखने के लिए ताडपत्र का प्रयोग सारे भारत में होता है । ऐसा प्रतीत होता है कि यह इस समय से भी बहुत पूर्व भारत में प्रचलित था, क्योंकि तक्षशिला से प्रथम शताब्दी का एक ताम्रपत्र मिला है जिस का आकार ताड़पत्र से मिलता है। ताड़पत्रों पर स्याही से लिखी हुई पुस्तकों में सब से पुराना अश्वघोष के दो नाटकों का त्रुटित अंश है जो दूसरी शताब्दी के आसपास का लिपिकृत है। गॉडफ्रे संग्रह के कुछ ताड़पत्र चौथी शताब्दी में लिखे प्रतीत होते हैं। जापान के होरियूज़ि विहार में सुरक्षित 'प्रज्ञापारमिताहृदयसूत्र' और 'उष्णीषविजयधारणी' नामक बौद्ध ग्रंथ छठी शताब्दी के आस पास लिपिबद्ध किये गए थे । ग्यारहवीं शताब्दी और उस के पीछे के तो अनेक ताड़पत्रीय पुस्तकें गुजरात, राजपूताना, नेपाल आदि प्रदेशों में विद्यमान हैं । लोहशलाका से उत्कीर्ण ताड़पत्रों की पुस्तकें पंद्रहवीं शताब्दी से पूर्व की नहीं मिली। (२) भूत्वचा-इस को भूर्जपत्र या भोजपत्र भी कहते हैं। यह 'भूर्ज' नामक वृक्ष की भीतरी छाल है, जो हिमालय पर्वत पर प्रचुरता से होता है। इस के अतिरिक्त 'उग्र' आदि अन्य वृक्षों की छाल पर भी लिखते थे परन्तु बहुत कम । वृक्षत्वचा का प्रयोग प्राचीन काल में पाश्चात्य देशों में भी होता था क्योंकि ग्रीक और लैटिन भाषाओं में छाल-सूचक शब्द -बिब्लोस (biblos) और लीव (libre) ही पुस्तक-सूचक शब्द बन गए। ग्रीक लेखक कर्टियस (Curtius) ने लिखा है कि सिकन्दर के आक्रमण के समय भारत में भोज वृक्ष की छाल पर लिखा जाता था। अलबेरूनी लिखता है कि "मध्य और उत्तरीय भारत में लोग तूज़ वृक्ष को छाल का प्रयोग करते हैं।......इस वृक्ष को भूर्ज कहते हैं । वे लोग इस का एक गज़ लम्बा और हाथ को खूब फैलाई हुई उंगलियों जितना, या उससे कुछ कम चौड़ा टुकड़ा लेते हैं, और इसे अनेक रीतियों से तैयार करते हैं। वे इसे चिकनाते और खूब घोंटते हैं जिस से यह दृढ़ और स्निग्ध बन जाता है । तब वे इस पर लिखते है।" भोजपत्रों पर लिखी सब से प्राचीन पुस्तक मध्य एशिया से मिली है जो खरोष्ठी लिपि का धम्मपद है और जो दूसरो या तोसरी शताब्दी में लिपि किया गया १. "अलबेरूनी का भारत" (हिन्दी), भाग २, पृ०८६-७ । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034193
Book TitleBharatiya Sampadan Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulraj Jain
PublisherJain Vidya Bhavan
Publication Year1999
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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