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________________ ( ४४ ) पाचवां अध्याय पुनर्निमाण उपलब्ध मूल और सहायक सामग्री के निरीक्षण और विवेचन से हम काल्पनिक मूलादर्श के पाठ का अनुमान कर सकते हैं । यही प्राचीनतप पाठ है जिस तक हम पहुंच सकते हैं । इस प्राचीनतम पाठ के स्वरूप को मालूम करना उस का पुननिर्माण कहलाता है। इस पुनर्निर्मित पाठ और रचयिता के मौलिक पाठ के बीच कई प्रतिलिपियों का अंतर हो सकता है जो अब विलुम हो चुकी हों । इन प्रतियों के लिपिकारों ने भी मौलिक पाठ में अवश्य विकार उत्पन्न किया होगा । इस लिए यह आवश्यक नहीं कि यह पाठ मौलिक पाठ से मिलता जुलता हो । प्रायः करके यह पाठ किसी भी उपलब्ध प्रति के पाठ से थोड़ा बहुत भिन्न होगा । हम निश्चित रूप से यह भी नहीं कह सकते कि यह पाठ सब से उत्तम है । परंतु यह उपलब्ध प्रतियों के पाठों से प्राचीन होगा क्योंकि यही तो इन सत्र का आधारभूत है। इस में लिपिकार की अशुद्वियों का और अप्रामाणिक शोधन का इतना स्थान नहीं, जितना कि उपलब्ध प्रतियों में होता है । पुनर्निर्मित पाठ और मौलिक पाठ के बीच इतने लिपिकारों और शोधकों का हस्तक्षेप नहीं जितनों का उपलब्ध प्रतियों के पाठ और मौलिक पाठ के बोच होता है क्योंकि काल्पनिक मूतादर्श या इस पुनर्निमित पाठ से उपलब्ध प्रतियों तक पाठ कई लिपिकारों तथा शोधकों के हाथ से गुजर कर आता है। इन्हों ने प्रस्तुत पाठ पर अपनी छाप छोड़ी होती है। इन के अस्तित्व का ज्ञान प्रतियों के निरीक्षण से प्राप्त हो जाता है । अत: यह पाठ उपलब्ध प्रतियों के पाठों से अधिक शुद्ध होगा और मौलिक के अधिक निकट होगा। पुनर्निर्माण की विधि काल्पनिक मूलादर्श के पुनर्निर्माण की विधि निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट हो जाएंगी। ___ एक संपादनीय ग्रंथ की आठ प्रतियां उपलब्ध हुई-क ख ग घ ङ च छ ज । इन के पाठों के विवेचन और मिलान से पता चला कि इन में से क ख ग घ ङ प्रतियों का एक गण बनता है और च छ ज का दूसरा ग। । अर्थात् क ख ग घ ङ काल्पनिक आदर्श " य" के आधार पर लिखित हैं और शेष " र " के । इन के निरीक्षण से पता लगा कि "य" गण के तीन उपगण हो सकते हैं-क ख, ग घ, Aho ! Shrutgyanam
SR No.034193
Book TitleBharatiya Sampadan Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulraj Jain
PublisherJain Vidya Bhavan
Publication Year1999
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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