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________________ ( २२ ) पुनि बहु बिधि गलानि जियमानी । अब जग जाइ भजौं चक्रपानी । ऐसेहि करि बिचार चुप साधी । प्रसव पवन प्रेरेउ अपराधी। प्रेरेउ जो परम प्रचंड मारुत कष्ट नाना ते सह्यौ । सो ज्ञान ध्यान बिराग अनुभव जातना पावक दह्यौ । विनयपत्रिका पद १३६ (५)" तीसरा अध्याय प्रतियों का मिलान संपादक को चाहिए कि जो सामग्री मिल सकती हो उसे इकट्ठा करे । प्रतिलिपियों का सूक्ष्म अवलोकन करे। उन की व्यक्तिगत विशेषताओं की देख भाल करे। यह देखे कि उन की कौन कौन सी बात मौलिक या प्राचीनतम पाठ के निर्णय में सहायता दे सकती है । इस प्रकार की जांच को प्रतियों का मिलान कहते हैं। मिलान से हमें यह पता चलता है कि अमुक प्रति की कौन कौन सी बात उस के आदर्श में विद्यमान थी । सब प्रतियों का निरीक्षण और मिलान कर चुकने पर प्रस्तुत पंथ के मौलिक अथवा प्राचीनतम पाठ का निश्चय करने के निमित्त संपादक प्रामाणिक और विश्वसनीय सामग्री को जुदा करे। वह इस सामग्री का बार बार सूक्ष्म अवलोकन करे और इसी के आधार पर मूलपाठ का निश्चय करे। प्रत्येक प्रति का साधारण रूप किसी पाठ के निश्चय में विशेष सहायता देता है। किसी ग्रंथ की 'क' और 'ख' दो प्रतियां हैं । इस के परस्पर मिलान से यदि ज्ञात हो कि जहां इन में पाठभेद है वहां 'ख' की अपेक्षा 'क' में शुद्ध, मौलिक एवं संभव पाठों की संख्या अधिक है, तो 'क' के पाठ 'ख' के पाठों से प्रायः अधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय होंगे। . परंतु यह नियम सर्वथा सिद्ध नहीं क्योंकि जो प्रतियां प्राय: अशुद्ध होती हैं उन में भी कहीं कहीं शुद्ध और मौलिक पाठ हो सकते हैं। और शुद्ध पाठों वाली प्रतियों में अशुद्ध और दृषित पाठ मिलते हैं । पिशल के शाकुंतल (दूसरा संस्करण) में प्रयुक्त B प्रति प्राय: अशुद्ध पाठों से भरी पड़ी है जैसे 'आयुष्मान' के स्थान पर निरर्थक 'आमुष्मान ' आदि । इस में मौलिक पाठों की कमी है। फिर भी इस में कहीं कहीं १. नागरीप्रचारिणी पत्रिका, वैशाख १६६६ में 'शंभुनारायण चौबे ' का 'मानस-पाठ भेद' नामक लेख, पृ० ३-७ । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034193
Book TitleBharatiya Sampadan Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulraj Jain
PublisherJain Vidya Bhavan
Publication Year1999
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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