SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के पास एक अच्छा खासा पुस्तक भंडार होगा । विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में धारा के राजा भोज के महल में भारी पुस्तक-संग्रह था । वि० सं० १२०० के लगभग सिद्धराज मयसिंह इसे अपने पुस्तकालय में मिलाने के लिए अणहिलवाड़ पाटण में ले पाया था । इसी प्रकार राज-भंडारों में बहुत सी पुस्तकें संगृहीत हो जाती थीं। खम्भात के दो जैन भंडारों में ३०००० से भी अधिक पुस्तकें हैं। तंजोर की राजलाइब्रेरी में १२००० से ऊपर पुस्तकें हैं। इसी प्रकार पाटण के जैन भंडारों में १२०२० से अधिक कागन की हस्तलिखित पुस्तकें हैं और ६५८ ताडपत्रीय पुस्तकें हैं। चौलुक्य वीसलदेव (वि० सं० १२६४-१३१६) के पुस्तकालय में नैषध' की वह प्रति थी जिस के आधार पर विद्याधर ने इस काव्य पर पहली टीका लिखी। इसी पुस्तकालय में सुरक्षित 'कामसूत्र' की एक प्रति के आधार पर यशोधर ने 'मयमंगला' टीका रची। बाँन (जर्मनी) के विश्वविद्या तय के पुस्तकालय में रामायण की एक प्रति है जो वीसलदेव के संग्रह के आदर्श की प्रतिलिपि है । इस से हम कह सकते हैं कि भारत में सातवीं शताब्दी में पुस्तकालयों का अस्तित्व था और भारत के बाहर से तो इस काल से भी बहुत पहले की पुस्तकें प्राप्त हुई हैं। दूसरा अध्याय सामग्री किसी प्राचीन ग्रंथ के संपादन करने के लिए संपादक को चाहिए कि वह उस ग्रंथ की सब सामग्री की पूरी पूरी खोज करे। यह सामग्री दो प्रकार को है-मूल और सहायक । मूल सामग्री मूल सामग्री वह है जिस के आधार पर किसी रचना का संपादन किया जाता है। यह प्रायः हस्तलिखित प्रतियों के रूप में होती है । हस्तलिखित प्रतियों से हमारा तात्पर्य किसी ग्रंथ की उन प्रतियों से है जो उस ग्रंथ की छगई से पहले हाथ द्वारा १. कात्रे-इंडियन टैक्स्चु अल क्रिटिसिज़म, पृ० १३ । ... २. डिस्क्रिप्टिव कैटॅलॅॉग ऑफ़ मैनुस्क्रिप्टस इन दि जैन भंडारज़ एट पाटण, भूमिका, पृ०४१। ३. . कात्रे, पृ० १३। Aho ! Shrutgyanam
SR No.034193
Book TitleBharatiya Sampadan Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulraj Jain
PublisherJain Vidya Bhavan
Publication Year1999
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy