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पीपल गूलर पिलखन आम्र और वह इनमें उत्पन्नहुए ॥ १०३ ॥ पंचपल्लव कहे हैं. ये सब कर्मों में श्रेष्ठ होते हैं. तुलसी सहदेवी विष्णुकान्ता शतावर ॥ १०४ ॥ यदि सौ औषधि न मिले तो इन मूलोंको ग्रहण करे. वह गूलर बैंत ॥ १०५ ॥ अश्वत्थ (पीपल) और मूल ये पंच कषाय कहे हैं. अश्वस्थान गजस्थान बमई दो नदियोंका संगम ॥ १०६ ॥ रानद्वारका प्रवेश इनसे मिट्टी मँगाकर कलशमें डारे. संपूर्ण समुद्र नदीअ ५ तलाव और जल देनेवाले नद ॥ १०७ ॥ ये सब यजमानके पापनाशक कलशमें आओ ॥ १०८॥ और कलशमें शिखी आदि पैंतालीस पञ्चभंगा इमे प्रोक्ताः सर्वकर्मसु शोभनाः । तुलसी सहदेवी च विष्णुकांता शतावरी ॥१०४॥ मूलान्येतानि गृह्णीयाच्छतालाभे विशेषतः । वटीवटोदुम्बरस्य वेतसस्य तथैव च ।। १०५॥ अश्वत्थश्चैव मूलश्च पञ्चकापायकाः स्मृताः । अश्वस्थानाद्गजस्थाना द्वल्मीकात्सङ्गमाद्धदात् ॥१०६॥ राजद्वारप्रवेशाच्च मृदमानीय निक्षिपेत् । सर्वे समुद्राः सरितः सरांसि जलदा नदाः ॥१०७॥ आयान्तु यजमानस्य दुरितक्षयकारकाः ॥१०८॥ शिख्यादिपञ्चचत्वारिंशद्देवांस्तत्र प्रपूजयेत् ।।१०९॥ वेदमन्त्रैर्नाममन्त्रैः प्रणव व्याहृतिभिस्तथा । होमस्त्रिमेखले कार्यः कुण्डे हस्तप्रमाणके ॥ ११०॥ यवैः कृष्णतिलैस्तद्वत्समिद्भिः क्षीरवृक्षकैः । पालाशः खादिरैर्वापामार्गोदुम्बरसंभवैः ॥ १११ ॥ कुशदूर्वामयेऽपि मधुसर्पिःसमन्वितैः । कार्यस्तु पञ्चभिर्बिल्वे बिल्लेबाजरथापि वा ॥ ११२॥होमान्ते भक्ष्यभोज्यैश्च वास्तुदेशे बलि हरेत् । नमस्कारान्तयुक्तेन प्रणवाद्येन सर्वतः ॥ ११३ ॥ ४५ देवोंका पूजन करे ॥ १०९॥ वह पूजन वेदके मंत्र वा नामके मंत्र ॐकार वा व्याहृतियोंसे करना और हस्तभर प्रमाणके तीन मेखला वाले कुण्डमै होम करना ॥ ११० ।। जो कालेतिल समिध और क्षीरवृक्ष पालाश खदिर अपामार्ग गूलर इनसे होम करै ॥ १११ ॥ अथवा ॥2 सहत मिलीहुई कुशा और दूबसे पृत मिलाकर करै अथवा पांच बेल वा बेलकी बीजोंसे करें ॥ ११२ ॥ होमके अन्तमें भक्ष्य और भोज्योंसे
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