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________________ BN वि. प्र. बनाया हो उसको मानम्य, बतासे जो बनाया हो उसको चन्दन कहते हैं. राजाओंका वनाम बनाया जो शिल्पियोंकी कल्पनासे स्थान उसे विजय कहते हैं ॥ १५॥ जो आठवां नृणकी जातियोंसे बनायाहुआ स्थान है उसे कालिमा कहते हैं. गृहस्थियोंके चार स्थान उत्तम होते हैं ॥ १६ ॥ सुवर्णसे चांदीसे तांबसे और लोहसे बनेहुए वे चारों कहे हैं-सुवर्णसे बनेहुएको कर और चांदीसे बनेहुएको श्रीभव कहते हैं ॥ १७ ॥ तबिसे बनेहुएको सूर्यमंत्र और लोहसे बनेहुएको चण्ड नाम कहते हैं. देव दानव गंधर्व यक्षराक्षस और पन्नग ॥ १८ ॥ ये पूर्वोक्त कालमेति च विज्ञेयमष्टम तृणजातिभिः । उत्तमानि च चत्वारि गृहाणि गृहमेधिनाम्॥१६॥ सौवर्ण राजतं ताम्रमायसं च प्रकीर्ति तम् । सौवर्ण तु करं नाम राजतं श्रीभवं तथा॥१७॥ताम्रण सूर्यमन्त्रन्तु चण्डनाम तथायसम् । देवदानवगन्धर्वयक्षराक्षसपनगाः ॥१८॥द्वादशैते प्रकारास्तु गृहाणां नियताः स्मृताः। जातुपं त्वनिलं नाम प्रायुवं वारिवन्धकम् ॥ १९॥ एवं सर्वासु जातीषु गृहाणि च चतुर्दश । चत्वारश्चोत्तमा ये च त गृहा वर्णपूर्वकाः ॥२०॥ शुभदा ब्राह्मणादीनां सर्वेषामपि शोभनाः । उत्तमाः शुद्धकालेषु स्थाप्याः शुद्धविधानतः॥२१॥काष्ठादिकृतगेहेषु कालापेक्षां न कारयेत् । तृणदारुगृहारम्भे विकल्प नैव कारयेत्॥२२॥ गृहांसे धारह प्रकार नियमसे कहे हैं, लाखसे बनाया जो घर उसको अनिल और जलका चन्धन जिसमें हो उसको प्रायुव कहते हैं| ॥ १९ ॥ इस प्रकार संपूर्ण जातियों में १४ प्रकारके घर होते हैं. चार जो पूर्वोक्त उत्तम घर हैं वे ब्राह्मण आदि वोंके क्रमसे होते हैं ॥२०॥ ब्राह्मण आदिकोंको शभदायी होते हैं और सब वणोंके लियेभी शोभन हैं उत्तम घरोंका शभकालमें और शद्धविधिसे स्थापन करना ॥ २१ ॥ काष्ठआदिसे बनायेहुए घरोंमें कालकी अपेक्षाको न करें तृण और काष्ठके गृहारंभमें भी विकल्प न करे ॥ २२ ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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