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________________ श्रीगणेशाय नमः ॥ वरकी दाता है मूर्ति जिसकी और मंगलोंका मंगल जो श्रीगणेश सो जयको प्राप्त हो, सबके नमस्कार करनेयोग्य ब्रह्मरूप सरस्वती जयको प्राप्त हो और चेतन और मोक्षरूप तीनों भुवनोंकी माता जयको प्राप्त हो और वाङ्मय महेश्वर मुझे शब्दरूपका ज्ञान करो ॥ १ ॥ ब्रह्माके भुवनपर्यंत जितने लोक हैं वे गृहस्थाश्रमके जिससे आश्रय हैं तिससे में गृहके आरंभ और प्रवेशके मुहूर्तको कहताहूं. हे मुनिश्रेष्ठ ! तुम एकाग्रमन होकर श्रवण करो जो प्राचीन वास्तुशास्त्र महादेवने कहा है ॥ २ ॥ ३ | वह पराशरऋषिने बृहद्रथको श्रीगणेशाय नमः ॥ जयति वरदमूर्तिर्मङ्गलं मंगलानां जयति सकलवंद्या भारती ब्रह्मरूपा । जयति भुवनमाता चिन्मयी मोक्ष रूपा दिशतु मम महेशो वाङ्मयः शब्दरूपम् ॥ १ ॥ आब्रह्मभुवनालोका गृहस्थाश्रममाश्रिताः । यतस्तस्माद् गृहारम्भप्रवेश समयं ह्यहम् ॥ २ ॥ प्रवक्ष्यामि मुनिश्रेष्ठ शृणुष्वैकाग्रमानसः । यदुक्तं शम्भुना पूर्वं वास्तुशास्त्रं पुरातनम् ॥ ३ ॥ पराशरः प्राह वृहद्रथाय वृहद्रथः प्राह च विश्वकर्मणे । स विश्वकर्मा जगतां हिताय प्रोवाच शास्त्रं बहुभेदयुक्तम् ॥ ४ ॥ विश्वकर्मोवाच ॥ वास्तुशास्त्रं प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया ॥ ५ ॥ पुरा त्रेतायुगे ह्यासीन्महाभूतं व्यवस्थितम् । स्वाप्यमानं शरीरेण सकलं भुवनं ततः ॥ ६ ॥ तं दृष्ट्वा विस्मयं देवा गताः सेन्द्रा भयावृताः । ततस्ते भयमापन्ना ब्रह्माणं शरणं ययुः ॥ ७ ॥ कहा और बृहद्रथने विश्वकर्माको कहा और वह विश्वकर्मा जगत्कं कल्याणके लिये अनेक भेदोंसे युक्त वास्तुशास्त्रको कहतेभये ॥ ४ ॥ विश्व कर्मा कहते हैं कि, जगत के कल्याणकी कामनासे वास्तुशास्त्रको कहता ॥ ५ ॥ पहिले त्रेतायुग के बीचमें एक महाभूत व्यवस्थित हुआ (उठा) उसने अपने शरीरसे संपूर्ण भुवनको शयन करादिया ॥ ६ ॥ उस आश्चर्यको देखकर भय करके सहित इन्द्रआदि देवता आश्व
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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