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________________ शिवोनाम ' इस मंत्रसे लोहदण्डका भली प्रकार पूजन करें और 'निवर्तयामि ' इस मंत्रसे पार्वतीके पति महादेवका भलीप्रकार ध्यान | करे ॥ १२० ।। लोहके दण्डको लेकर जोरसे वास्तुपुरुषका खनन करे वह लोहका दण्ड जितना अधिक भूमिमें प्रविष्ट होजाय उतने कालतक उस गृहकी स्थिति होती है ॥ १२१ ॥ वस्वसे टकेहुए उस लोहदण्डको ब्राह्मणके प्रति मिवेदन करें, यदि लोहदण्डकी विषम अंगुली हों तो पुत्रोको देताहै सम अंगुली हों तो कन्याओंको देताहै ।। १२२ ॥ जिस लोहदण्डको न सम अंगुली हों न विषम हों वह दुःखदायी | शिवो नामेति मंत्रेण लोहदण्डं प्रपूजयेत् । निवर्तयामीत्यूचा वै ध्यायेदीशमुमापतिम् ॥ १२० ॥ बलेन लोहदण्डेन निखने द्वास्तुपूरुपम् । यावत्प्रमाणां भुवमेति तावत्तस्य स्थितिर्भवेत् ॥ १२१ ॥ तं लोहदंड वस्त्राक्तं ब्राह्मणाय निवेदयेत् । पुत्रायं विषमेऽङ्गल्ये समेऽङ्गुल्ये तु कन्यकाम् ॥ १२२ ॥ निर्दिशेत्तु तयोर्मध्ये लोहखंडात्तिदं तथा । तस्मिन्काले शुभां वाणी माङ्गल्यं चारुदर्शनम् ॥ १२३ ॥ वेदगीतध्वनि पुष्पफललाभं तथैव च । वेणुवीणामृदंगानां श्रवणं दर्शन शुभम् ॥ १२४ ।। दधिदूर्वाकुशाश्चेति कल्याणद्रव्यदर्शनम् । सुवर्ण रजतं तानं शवमौक्तिकविद्रुमान् ॥ १२५ ॥ मणयो रत्नवैडूर्यस्फाटिकं || सुखदा मृदः । गारुडं च फलं पुष्पं मृन्मय गुल्ममेव च ॥ १२६ ॥ होता है, उस वास्तुपुरुषके खननसमयमें शुभवाणी और मंगल और सुन्दरवस्तु दर्शन ॥ १२३ ॥ वेद और गीतकी ध्वनि, पुष्पफलका लाभ वेणु वीणा मृदंग इनका सुनना और देखना शुभ होता है ।। १२४ ॥ दही दूब कुशा इन द्रव्योंका दर्शन कल्याणकारी होता है, सुवर्ण चांदी तांबा शंख मोती मूंगा ॥ १२५ ।। माणि रत्न वैदर्य रफारीक सुखकी दाता मिट्टी और गरुडका फल पुष्प और मिट्टीका गुल्म (गुच्छा )॥१२६॥ १ शिवो नामासि स्वधिलिस्त पिता नमतं अस्तु मा माहि सीः । ३ निवर्तयाम्य'युषान्नाधाय प्रजननाय रायस्पोपाय सुप्रजामवाय सुवीर्याय ।।
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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