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________________ देखकर संग्रह करे और अन्य शकुनोंको भी परीक्षा करे । तुषोंसे रहित आठ जो जिसके भीतर आजाय उसको अंगुल कहते हैं ॥ ५४ ॥ उसी मानसे स्थपति (बढई ) शयन आदिको बनावे। सौ १०० अंगुलकी शय्या बडी कही है वह चक्रवर्ति राजाओंकी होती है और आठ भागसे हीन जो इसका अर्द्धभाग है वह शय्याका विस्तार (चौड़ाई) कहा है ॥ ५५ ॥ आमाम तीसरे भागका होता है और पादोंकी ऊंचाई कुक्षिपर्यत होती है । वह शय्या सामंतराजा आदि और चतुर मनुष्योंकी होती है उससे देश अंगुल कम राजकुमारों की तेन मानेन स्थपतिः शयनादीन् प्रकल्पयेत् । शतांगुला तु महती शय्या स्याच्चकवर्तिनाम् । अष्टांशहीनमस्या विस्तारं परिकीर्तितम् ॥५५॥ आयामरुवंशको भागः पादोच्छ्रायः सकुक्षिकः । सामन्तानां च भवति सा पट्टना तथैव च ॥ कुमाराणां च सा प्रोक्ता दशोना चैव मन्त्रिणाम् ॥ ५६ ॥ त्रिषट्कोना बलेशानां विंशोना च पुरोधसाम् । पडंशहीनमस्यार्द्धविस्तारं परि कीर्त्तितम् ॥ ५७ ॥ आयामरुवंशको भागरूयशही नस्तथैव हि । पादोच्छ्रायश्च कर्तव्यश्चतुस्त्रिव्यङ्गुलैः क्रमात् ॥ ५८ ॥ सर्वेषा मेव वर्णानां सार्द्धहस्तत्रयं भवेत् । एकाशीत्यंगुलैः कार्या शय्या देवविनिर्मिता ॥ ५९ ॥ और मन्त्रियोंकी होती है ॥ ५६ ॥ अठारह अंगुल कम सेनापति और पुरोहितोंकी कही है इससे छः माग कम जो इसका अर्द्धभाग है वह विस्तार कहा है ॥ ५७ ॥ तीसरे अंशका जो भाग है वह आयाम होता है अथवा तीसरे भागसे कम होता है और पादोंकी ऊंचाई चार तीन दो अंगुलोंके क्रमसे कही है अर्थात् इन अंगुलोंसे कम चतुर्थभागकी ऊंचाईके पाये बनवावे ॥ ५८ ॥ संपूर्ण वर्णोंकी शय्या साढ़ेतीन हाथ और इक्यासी ८१ अंगुलोंकी बनवानी और वह देवनिर्मित शय्या कहाती है ॥ ५९ ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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