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________________ है ढकाहो उससे दरिद्रता और पुप्पके वृक्षसे कुलका नाश होता है ॥२०॥ सर्पसे युक्त वृक्षसे सर्पका भय और देवालयके वृक्षसे नाश होता है और कन्याका जिसमें चिद हो उससे कन्याओंका जन्म होता है छिद्रोंसे जो युक्त हो उससे स्वामीको भय होता है. लिंग वा प्रतिमा वा शिक्र इन्द्रध्वजा इनको ॥ २१ ॥ कृत्तिका आदि पांच नक्षत्रोंमें चन्द्रमा होय तो कदाचित् न बनवावे, घर देवालय इनमें यत्नसे इसकी परीक्षा करे और मासदग्ध वारदग्ध और तिथिदग्ध ॥ २२ ॥ रिक्ता तिथि अमावस्या और षष्ठी ६ तिथि इनको भी वर्जदे. एकार्गल दोष और सर्पयुक्त सर्पभयं देवालयगते क्षयः। कन्याजन्म तु कन्यांके सच्छिद्रे स्वामिनो भयम् । लिंगे वा प्रतिमायां वा तथा शक्रध्वजेऽपि च ॥ २१ ॥ आग्नेयपञ्चके चन्द्रे न विदध्यात्कदाचन । गृहे देवालये वापि परीक्षेत प्रयत्नतः । मासदग्धं वारदग्धं तिथिदग्धं तथैव च ॥२२॥ रिक्तातिथिं च दर्श च तिथि षष्ठीं च वर्जयेत् । एकागलं तथा भद्रा ये च योगाः कुसंज्ञकाः॥२३॥उत्पातदूषित मृक्षं संक्रान्तौ ग्रहणेषु च । वैधृतौ च व्यतीपाते न विदध्यात्कदाचन ॥२४॥ सौम्य पुनर्वसुमैत्रं करं मृलोत्तराद्वये । स्वाती च श्रवणं चैव वृक्षाणां छेदन शुभम् ॥ २५ ॥ समभूमिर्वने यस्मिंस्तस्मिन्वृक्षं प्रपूजयेत् । गन्धपुष्पादिनैवेद्यं बलिं दद्याद्विशे पतः ॥२६॥ वस्त्रेणाच्छादितं कृत्वा वेष्टयेत्तन्तुना तथा । श्वेतवर्णानुवर्णेन वर्णानुक्तकमेण च ॥२७॥ धू भद्रा और अन्य जो कुयोग हैं ॥ २३ ॥ और उत्पातसे दूषित जो नक्षत्र हैं संक्रांति ग्रहण वैधृति व्यतीपात इनमें घरको कदाचित् न बन| वावे ॥२४॥ मृगशिर पुनर्वसु अनुराधा हस्त मूल दोनों उत्तरा स्वाति श्रवण इनमें वृक्षोंका छेदन शुभदायी होता है ॥ २५ ॥ जिसकी वनकी भूमि समान हो उस वनमें वृक्षका पूजन करे और गन्ध पुष्प आदि नैवेद्यको और विशेषकर बलिको दे ॥ २६ ॥ वस्त्रसे आच्छा
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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