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________________ विक्र मसे दक्षिणमें स्थित हैं मघा प्रोष्ठपद अर्यमा मौसानदेवत (मूल)॥३९॥४०॥ शतभिषा अश्विनी हस्त ये क्रमसे पश्चिम दिशामें स्थित है स्वाती आश्लेषा अभिजित् मृगशिर श्रवण धनिष्ठा ॥४१॥ भरणी रोहिणी ये क्रमसे उत्तरके द्वार में स्थापन करे बुद्धिमान मनुष्य उस दिशाके : MEx द्वारके नक्षत्रों में ही उस दिशाके द्वारको बनवावे ॥ ४२ ॥ और स्तम्भ आदिका स्थापनभी बुद्धिमान् मनुष्य विधिसे करे और अधोमुख नक्षत्रों में का देहुली खातको करै॥ ४३ ॥ और तिर्यमुखनक्षत्रोंमें और द्वारके नक्षत्रों में स्तम्भ और द्वारका स्थापन प्रासाद हर्म्य और गृहोंके बीचमें सदैव वैश्वदेवाश्विनीचित्राः क्रमादक्षिणमास्थिताः । पित्र्यं प्रौष्ठपदार्यम्णं तथा मांसानदैवतम् ॥ १० ॥ वारुणाश्विनसावित्र्य क्रमात पश्चिमसंस्थितम् । स्वात्याश्शेषाभिजित्सौम्यं वैष्णवं वासवं तथा ॥४१॥ याम्यं ब्राह्म क्रमात्सौम्यं द्वारेषु च विनिर्दिशेत् । द्वार: स्तदिशाद्वारं स्थापयेद्वा विचक्षणः ॥४२॥ स्तंभाधारोपणं शस्तं तथैव विधिना बुधैः। अधोमुखैश्च नक्षत्रैदेहलीखातमेव च॥४३॥ तिर्यमुखःरिक्षस्तम्भद्वारावरोपणम् । प्रासादेषु च हर्येषु गृहेष्वन्येषु सर्वदा॥४४॥ आग्नेय्यां प्रथम स्तम्भ स्थापयेत्तद्विधानतः । स्तम्भोपरि यदा पश्येत्काकगृध्रादिपक्षिणः ॥४५॥ दुनिमित्तानि संवीक्ष्य तदा कर्तुर्न शोभनम् । तस्मात्स्तम्भोपरिच्छवं शाखां फलवती तु वा॥४६॥ धारयेदथवा वस्त्रं बुधो रत्नादि निःक्षिपेत् । दिक्साधनं च कर्तव्य शिलाद्वारावरोपणम् ॥४७॥ स्तंभे च वास्तुविन्यासे तथा च गृहकर्मणि। प्रासादे वा तथा यज्ञ मण्डपे बलिकर्मसु ॥४८॥ धू कर ॥४४॥ पहिलास्तम्भ आग्नेयदिशामें विधिसे स्थापन करे और स्तम्भके ऊपर जब काक गीध आदि पक्षियोंको देखे ॥४५॥ और खोटे निमि त्तोंको देखे तो कर्ताको शुभ नहीं होता तिससे स्तंभके ऊपर छत्र वा फलवाली शाखाको ॥४६॥ अथवा वस्त्रको धारण करवादे, बुद्धिमान् मनुष्य रत्न आदि स्थापन करे और शिलाद्वारके स्थापनमें दिशाका साधनभी करे ॥ ४७ ॥ स्तंम वास्तुपुरुषके स्थापन गृहकम प्रासाद यज्ञमण्डप और त
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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