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________________ बि.प. छामरणको देती है ॥ ५९॥चौराहेमें कीर्तिका नाश और देवमंदिरमें घर बनानेसे उद्वेग होता है और सचिव (मन्त्री) के स्थानमें धनकी हानि और गम गृह बनानेसे अत्यन्त विपत्ति होती है ॥ ६० ॥ और जिस भूमिमें बहुतसे गढेहों उसमें जलकी प्यास.और कच्छपके समान है। भूमिमें धनका नाश होताहै । इसके अनन्तर भुमिकी परीक्षाको कहतेहैं-हस्तमात्र भूमिको खोदकर फिर उसी मिट्टीसे भरे. यदि मिट्टी अधिक मध्यम और न्यून हो जाय तो क्रमसे श्रेष्ठ मध्यम अधम फल जानना ॥ ६१ ॥ अथवा हस्तमात्रके गढेको जलसे भरदे और शीघ्र सौ चतुष्पथे त्वकीर्तिः स्यादुद्वेगो देवसद्मनि । अर्थहानिश्च सचिवे श्वश्रे विपद उत्कटाः ॥ ६० ॥ गायां तु पिपासा स्यात्कूर्मामे धननाशनम् ॥ अथ भूमिपरीक्षा ॥ निखनेद्धस्तमात्रेण पुनस्तेनैव पूरयेत् । पांसुनाधिकमध्योना श्रेष्ठा मध्याधमाक्रमात् ॥ ६१॥ जलेनापूरयेच्भ्रं शीघ्रं गत्वा पदैः शतम् । तथैवागम्य वीक्षेत न हीनसलिला शुभा ॥ अरनिमात्रे श्वभ्रे वा ह्यनुलिप्ते च सर्वतः ॥ ६२ ॥ घृतमामशरावस्थं कृत्वा वर्तिचतुष्टयम् । ज्वालयेद्रूपरीक्षार्थं संपूर्ण सर्वदिङ्मुखम् ।। ६३ ॥ दीप्ता पूर्वादि गृह्णीयाद्वानामनुपूर्वशः । इलाकृष्टे तथोद्देश सर्वबीजानि वापयेत् ।। ६४ ॥ विपञ्चसप्तरात्रेण न प्ररोहन्ति तान्यपि । उप्त | वीजा त्रिरात्रेण सांकुरा शोभना मही ॥६५॥ १०० पैंड चलकर और उसी प्रकार आनकर देखे यदि जल कम होजाय तो भूमि शुभ न समझनी अथवा वितस्त भर गढेको चारों तरफ लीपकर ।। ६२ ॥ कच्चे शरावेमें घीकरके चारों दिशाओंको पृथ्वीकी परीक्षाके लिये चार बत्ती बाले ॥ ६३ ॥ यदि चारों बत्ती जलती रहे तो ब्राह्मण आदि वर्णोके क्रमसे पूर्वआदि दिशाकी भूमिको ग्रहण करें अथवा हलसे जोतेहुए देशमें सब प्रकारके बीजोंको वो दे॥ ६४॥ तीन पांच सात रात्रि वीजमें क्रमसे यह फल जानना. यदि तीन रातमें बोयेहुए बीजोंमें अंकुर जम आवे तो पृथ्वी उत्तम समझनी ॥ ६५ ॥ ५॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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