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________________ वि. प्र. ॥ ५८ ॥ जिसकी सोलह अस्रड़ों और दो भूमि जिसमें अधिक हों वह पद्मक कहाता है. पद्मकके तुल्य जिसका प्रमाण हो वह श्रीतुष्टक कहाता है, पांच जिसके अण्डहों, तीन जिसकी भूमि हों, गर्भ में जिसके चार हाथ हों ॥ ९८ ॥ वह वृष नामसे होता है. वह प्रासाद सब कामनाओंको देता है, सप्तक और पंचकनामसे जो प्रासाद हमने कहे हैं, वे सिंह नामके प्रासादके समान जानने जो अन्य प्रासाद अन्य प्रमाणसे ॥ ९९ ॥ चंद्रशालाओंके युक्त कहे हैं, वे सब प्राग्ग्रीवके युक्त होते हैं. इंटीके वा काष्ठके वा पत्थरके होते हैं. तोरणोंसहित होते हैं मेरु नामका मन्दिर पद्मकः षोडशास्रस्तु भूमिद्वयमथाधिकः । पद्मतुल्यप्रमाणेन श्रीतुष्टक इति स्मृतः । पञ्चांडकस्त्रिभूमिस्तु गर्भे हस्तचतुष्टयम् ॥ ९८॥ वृषो भवति नाम्ना यः प्रासादः सर्वकामिकः । सप्तकाः पञ्चकाश्चैव प्रासादा ये मयोदिताः। सिंहस्य ते समा ज्ञेयायेचा न्येऽन्यप्रमाणतः ॥ ९९ ॥ चंद्रशालैस्समोपेताः सर्वे प्राग्ग्ग्रीवसंयुताः । ऐष्टिका दारवाश्चैव शैलजाश्च सतोरणाः । मेरुः पञ्चा शद्धस्तः स्यान्मन्दारः पञ्चही नकः ॥ १०० ॥ चत्वारिंशत्तु कैलासश्चतुस्त्रिंशद्वितानकः । नंदिवर्द्धनकस्तद्वद्वात्रिंशत्समुदाहृतः । त्रिंशद्भिर्नन्दनः प्रोक्तः सर्वतोभद्रकस्तथा ॥ १०१ ॥ एते षोडशहस्ताः स्युश्चत्वारो देववल्लभाः । कैलासो मृगराजस्तु वितान च्छंदको गजः ॥१०२॥ एते द्वादशहस्ताः स्युरेतेषां सिंहनादकः । गरुडोऽष्टकरो ज्ञेयः सिंहो दश उदाहृतः ॥ १०३ ॥ ५० पचास हाथका और मन्दर ४५ पैंतालीस ॥ १०० ॥ कैलास ४० चालीस हाथका, वितानक ३४ चौतीस हाथका बत्तीस ३२ हाथका नन्दिवर्द्धन कहा है. तीस ३० हाथका नन्दन और सर्वतोभद्रक कहा है ॥ १०१ ॥ ये चारों १६ सोलह हाधके देवताओंको प्यारे होते हैं. कैलास मृगराज वितानच्छन्दक और गज ॥ १०२ ॥ ये बारह हाथके होते हैं. इनमें सिंहनादक गरुडके आठ कोन होते हैं. सिंहके दर्श भा. टी. अ. ६ ।। ५८ ।।
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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