SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय निवेदन पाइअकहासंगहे। & प्रकाशकीय PI निवेदन % % *% % अमने जणावतां अतिहर्ष थाय छे के-सदरहु संस्था तरफथी अत्यार सुधीमा ४४नी संख्यामां नाना मोटा ग्रन्थो तथा प्रतिओ प्रकाशित करवामां आवेल छे. जेमांना केटलाक तो अमुद्रित हता. तेवी रीते अत्यार सुधी कदि नहि प्रकाशित थयेल आचार्य सिरिपउमचंदमूरिसीसविरइयसिरिविक्कमसेणचरिय प्राकृत कथानकनी अन्तर्गत, दान-शीयल-तप-भावना-सम्यक्त्व-नवकार तथा अनित्यता वगेरे उपर दर्शावेल चौद कथाओ पैकी मळेल बार कथाओनो संग्रह करी पाइअकहासंगह नामनो आ ग्रन्थ सिद्धान्तमहोदधि आचार्य श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजना पट्टप्रभावक-व्याख्यानवाचस्पति आचार्य श्रीमद्विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजीना विद्वान् शिष्यो पूज्य पंन्यासजी श्रीमानविजयजी महाराज तथा पूज्य पंन्यासजी श्रीकान्तिविजयजी महाराजे सम्पादित तथा संशोधित करी आपेल छे. तेने आ संस्थाना ४५ मा प्रन्यांक तरीके वाचकजनोना करकमलमां रजु करवा आजे अमे भाग्यशाली थया छीए. श्रा प्रन्थनी महत्ता अंगेनो ख्याल सम्पादकीय वक्तव्यमां आपेल होवाथी अमारे ते संबंधी कइ पण लखवार्नु रहेतुं नथी. आ ग्रन्थ छपाववामां कोईनी पण सहाय मळेल नथी. आधी आ अन्य तैयार करवामां जे खर्च थयेल छे, ते प्रमाणमांज किंमत IRI|| २ ॥ % %94 % %% AE% A %
SR No.034180
Book TitlePaiakaha Sangaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay, Kantivijay
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy