SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्ता वना. ॥ ३॥ धुरंधर पूर्वाचार्यो अपूर्व ग्रंथो रचीने आपणा उपर जे महान् उपकार करी गया के तेनो परिपूर्ण खाज तेमना रचेला| ग्रंथो शुधरीते, सुंदर टाइपथी, उंचा कागळ उपर उपावीने बहार पाड्या शिवाय जैनवर्ग के अन्य लश्शके एम नथी. तेथी जैनधर्मनी दरेक जाहेर संस्थाओनी खास अने प्रथम फरज एज वे के तेमणे आ कार्य उपामी खेवू. ते साये श्रीमंत गृहस्थो के जेमने पूर्व नवे करेला पुण्योदयथी लक्ष्मी प्राप्त थ ने तेमणे ते कार्यमा पूरती सहाय आपवी. ज्ञानदान ए सर्वोत्कृष्ट दान दे अने तेन माटे आ एक परम साधन चे. आवा ग्रंथो खखाववामां जे खर्च थाय ने ते करतां उपाववामा करतां पण उगे खर्च थाय ने. ते पण उंचा कागळ उपर ने सारा प्रेसमा उपावे त्यारे. तऽपरांत एक बीजो लाल ए थाय बे के प्रतो लखवामां सहीया अशुचतानी वृद्धि कर्या करे , जेथी तेनी लखेली दरेक प्रत शुद्ध करवी पके चे, त्यारे उपाववा माटे एक वखत जो पूरतो प्रयास कर्यो होय ने तो पनी तेनापरथी जेटली नकतो काढवामां आवे तेमां फरीने तेवो प्रयास करवो पम्तो नथी. जे श्रीमंतो श्रावा अति साजकारी कार्यमा पोताना व्यनो उपयोग करता नथी तेमनुं व्य निष्फलताने पामे. श्रा अने बीजी ग्रंथमाळा विगेरे प्रगट करवानो आ सन्ना तरफथी बेत्रण वर्षश्री जे प्रयत्न शरु करवामां श्राव्यो ने तेमां खास प्रेरणा अने दरेक ग्रंथनी प्रतो मेळवी आपवानी तेमज तेनी प्रेसकोपी तपासी आपवा विगेरेनी दरेक प्रकारनी मदद पन्यासजी श्री आणंदसागरजी महाराजे आपी ने अने आपे तेमज आपवा कबुल कयु ने तेथी आ सजा ते खाते तेमना संपूर्ण आजार तो वे. | ॥३ ॥
SR No.034179
Book TitleAdhyatmasara Devdharm Pariksha Adhyatmopanishad Adhyatmik Khandan Satik Yatilakshan Samucchay Nayrahasya Naypradip Nayoapdesh Savchuri Jain Tark Paribhasha Gyanbindu
Original Sutra AuthorYashovijay
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy