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________________ म०प० ॥ ४७ ॥ Restits तो कम साधुभोने सय भापनार एवा अन्योअम्य संग्रहना बलवडे पटले वैयावच करवावडे परलो - कना अर्थ पोतानो अर्थ साधी शके ? (न साधी शकेः ॥ ८३ ॥ जिरा वयमप्प मे सक्का हु साहु मधे ॥ ॥ महुरं कसाहुइ सुगं तेण ॥ सादेन अप्पणो श्रहं ॥ ८४ ॥ अल्प एवं पण मधुर एवं अज्ञे कानने गंमतुं, आ वितरागनुं वचन, सांभळता जीवे साधुओनी मध्ये पोarat अर्थ साधवाने खरेखर समर्थ थइ शकाय ॥ ८४ ॥ वीर पुरिस पन्ननं ॥ सप्पुरिस निसेवियं परमघोरं ॥ धन्ना सिलायल गया ॥ सादिंती अप्पलो अहं ॥ ८५ ॥ सत्पुरुषोए प्ररूपेलो भने उत्तम पुरुषोर सेवेलो अने परम मुश्केल एवो अर्थ जे पुरुषो शिलातलने विषे रहेला थका पोताना अर्थने साधेछे तेओने धन्य छे ।। ८५ ।। वादिति इंदिया || yव मकारि पइस चारीणं ॥ कय परिकंम कीवा ॥ मरणे सुह संग वार्यमि ॥ ८६ ॥ पूर्वे जेणे पोताना आत्माने बाधाम न राख्यो होय तेने इंद्रियो पीडा आपेछे अने परिसह सहन नाह करवाथी मरणने वखते सूख छांडतां वीएछे ॥ ८६ ॥ ४२७२००८-२००९ पयनो. ।।। ४७५
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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