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________________ MARTOOT मख शतकम् उद्यमने नजीदेनारो (७२) मूर्ख जाणवोः ॥ १९॥ गोष्टीरतिर्दरिद्रश्च । दैन्ये विस्मृतनोजनः । गुणहीनः कुलश्लाघी । गीतगायी खरखरः ॥ २० ॥ दरिद्र छतां गोष्टीमा एटले खानपान आदिकनी मंडलीमा आसक्त ( ७३ ), दीनपणुं प्राप्त थवाथी एटले दिलगिरीना वखते योजनने विसारी मूकनारो (७४), गुणरहित छतां पोताना कुलनी प्रशंसा करनारो (७५), अने गधेडासरखो अवाज छतां मायन गानारो (७६ ) मूर्ख जाणवो. ।। २० ॥ नार्याभयान्निबझार्थी। कार्पण्यार्जितदर्यशः ॥ व्यक्तदोषजनश्लाघी। सनामध्यार्धनिर्गतः ॥ २१॥ का सीना क्यथी धनने गुप्त राखनारो (७७), कृपणताथी अपजश उपार्जन करनारो ( ७८), जेना दोषो प्रगटपणे 10 देखाता होय तेवा माणसनी प्रशंसा करनारो (७९), तथा सभामांथी अधवचे उठी जनारो (८०) मूर्ख जाणवो. ॥२१॥ स्तो विस्मृतसंदेशः । कासवांश्चौरिकारत॥भूरिजोज्यव्ययः कोत्यै । श्लाघायै स्वल्पनोजनः ॥२२॥ RI कासदप कारतांछता संदेशानुं विस्मरण करनारो (८१), खांसी- दरद छतां चोरी करवामां आसक्त (८२ ) कीर्तिमाटे जमणवारकस्सामा घणुं द्रव्य खरचनारो (८३), अने पातानी प्रशंसा कराववामाटे स्वल्प भोजन करनारो (८३) व जाणवो. ।२२। स्वल्पे मोज्येऽतिरसिकः । प्रफुल्बश्वद्मचाटुभिः ॥ वेश्याव्यापारकलही। योमैत्रे तृतीयकः ॥२३॥ 000000000000000000 00000000000000000 ||॥ ॥
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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