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________________ " " विकिपिरि जा का पत्रणा ॥ कया मए राग दोस यसरण ॥ पमिबंधेण बहविदं॥ तं निंदे तं च गरिहामि ॥६६॥ __ मे कोई प्रार्थना में राग द्वेषने घश थइ प्रतिबंधे करी घणी प्रकारे करी होय ते हुँ निंदुएं अने गुरुनी साखे गरहुंषु ॥ ६६॥ इंतूण मोहजालं ॥ वित्तण य अध्कम संकलिअं॥ जंमस मरण रहह ॥ नितूण जवान मुञ्चिदिसि ॥६७ ॥ मोहजालने हणीने, अने आठ कर्मनी सांकलने छेदीने जन्म मरणरुपी अर्हटने भागी नास्त्रीने संसारथकी तुं मूकाइश ॥६७॥ पंच महत्वयाई॥तिविहं तिविहेण चारु हेनणं ॥ मश वयण काय गुत्तो ॥ सद्यो मरणं परिनिया ॥६॥ पांच महाव्रतने त्रिविधे त्रिविधे आरोपीने मन वचन अने काय गुप्तिथी मुप्त एत्रो सावधान थइ मरणने आदरे ॥१८॥ कोई माणं माया ॥ लोहं पिऊं तदेव दोसं च ॥ चश्मण अप्पमत्तो ॥रकामि महबए पंच ॥ ६॥ 0"+"AnD00 0 OHSer
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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