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________________ शतकम् मूर्ख-18 निर्बलने शिक्षा करवामाटे शूरवीर (४७), अने वीना दोषो प्रत्यक्ष जोया छतां पण तेप्रते आसक्ति राखनारो (४८) || मूर्ख जाणवो. ॥ १३॥ क्षणरागी गुणाभ्यासे । संचयेऽन्यैः कृतव्ययः ॥ नृपानुकारी मानेन । जने राजादिनिंदकः॥१४॥ ___गुणोनो अभ्यास करवामां क्षणिक उत्साहवाळो (४९), वापदादाए संचय करेलुं धन उडाडनारो (५०), अहंकारथी | राजानुं अनुकरण करनारो (५१), अने जाहेरमा राजाआदिकनी निंदा करनारो (५२) मूर्ख जाणवो- ॥ १४ ॥ दुःखे दर्शितदैन्यातिः । सुखे विस्मृतपुर्गतिः ॥ बहव्ययोऽल्परक्षार्थ । परीक्षायै विषाशनः ॥१५॥ दुःख पड्ये दीनपणानी पीडा देखाडनारो (५३), सुखी अवस्थामा दुर्गतिने विसारी मूकनारो (५४), स्वल्प आवरुआदिकना रक्षणमाटे घणो द्रव्यर्नु खरच करनारो (५५), अने फक्त परीक्षा करवामाटे विषनुं भक्षण करनारो (५६) मूर्ख जाणवो. ॥ १५॥ दग्धाथों धातुवादेन । रसायनैः रसक्षयी॥ यात्मसंभावनास्तब्धः। क्रोधादात्मवधोद्यमः ॥१६॥ धातुवादथी एटले पाराआदिकनी रसायनक्रियावी धन मेळववानी लाळघे धननोधमाडो करनारो (५७), रसायनोना | भक्षणथी शरीरनी धातुओनो विनाश करनारो (५८), पोताने मळ्ता सन्मानथी अकड रहेनारो (५९), अने क्रोधथी आपघात 9000000000000000000 0000000000000066 ॥५॥
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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