SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भत्त पयनो. ॥१६॥ सामान नव ब्रह्मचर्यनी गुप्ति तेणे करी शुद्ध एवं ब्रह्मचर्य ने रक्षण कर निस घणा दोपथी भरेलो एवो ना- णीने कामने जीत ॥१०७॥ . जावइया किरदोसा ॥ इहपरलोए ऽहावदाहंति ॥ आवद तेन सव्वे ॥ मेहुण सन्ना मगुस्सस्स ॥ १७ ॥ खरेखर जेटला दोष आ लोक अने परलोकने विपे दुःखना करनारा छे ते वधा दोषोने मनुष्यनी मैथुन संज्ञा लावेछे ॥१०८॥ र अर तरल जीदा ॥ जुएण संकप्प नुप्पम फरोण ॥ बिसय बिलवासिणा ।। मैंय मुहेण बिब्बो अरोसेण ॥१॥ रति अने अरतिरुप चंचल वे जीभवाला अने संकल्प रूप प्रचंड फणावाला अने विषयरुप बीलमांवसनारा अने मदरूप मुखवाला अने गर्वयी अनादररुप रोषवाला ॥ १०॥ . काम नुअंगेण दहा ॥ लचा निम्मोय दप्प दाढेण ॥ जासंति नरा अवसा ॥ उस्सह उरकावह विसेण ॥ ११ ॥ लज्जारुप कांचलीवाला अने अहंकाररुप दाढवाला अने दुःसह दुःखकारक विषवाला एवा काम 15 भुजंगवडे हसाएला माणसो परवश थएला देखायछे ॥१०॥ १०68505555246- -2605556HOMESEASESAMRPANFeress 50१६॥
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy