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________________ मूर्ख ॥ १॥ 48000000066666 ॥ श्री जिनाय नमः ॥ - * ॥ श्रीचारित्रविजयगुरुभ्यो नमः ॥ * - ॥ अथ मूर्खशतकं प्रारभ्यते ॥ Boz BR ( गूर्जरजाषांतरोपेतं ) भाषांतरकर्ता तथा छपावी प्रसिद्धकर्ता पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज ( जामनगरवाळा ) शृणु मूर्खतं राजंस्तं तं भावं विवर्जय ॥ येन त्वं राजसे लोके । दोषहीनो मधिर्यथा ॥ १ ॥ हे राजन्! तुं भुर्खशतक सांभळी अने ते ते मूर्खपणाना भावनो त्याग कर के जेथी निर्दोष मणिनीपेठे तु जगतम शोभा पामशे ॥ १ ॥ सामर्थ्यं विगतोद्योगः । स्वश्लाधी प्राज्ञपर्षदि ॥ वेश्यावचसि विश्वासी । प्रत्ययी दंजमंबरे ॥ २ ॥ छती शक्ति निरुमी (१), विद्वानोनी सभामा पोते पोवानी प्रशंसा करनारो (२), वेश्याना वचनोपर विश्वास करनारो 6900000000000000000 शतकम् ॥ १ ॥
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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