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________________ 1 स्त्रीभो मूलभ छ, रान अने देवपणुं ए पण मुलभ छे पण एक जे दुर्लभ छे ते नवकार छे ते माटे मनने विषे नवकारर्नु स्मरण करो ॥ ६४॥ जेए सहाएण गयाण ॥ परनवे संन्नति नवियाणं ॥ मण वंबिय सुस्काई तं सरसु मणे नमुक्कारं ॥६५ ॥ जेनी सहाय पामेला भव्य जीवोने परभवने विषे मनोवांछित मुखो मले छे ते नवकार मंत्रनुं मनने | विषे स्मरण करो ॥१५॥ लहमि जंमि जीवाणं ॥ जायज्ञ गोपयं व नवजलदी॥ सिव सुद्द सचंकारं ॥ तं सरसु मणे नमुक्कारं ॥१६॥ जे नवकार पामे छते जीवोने संसार समुद्र गोपद (गावडा) जेबो थाय छे अने जे मोक्ष मुखनो सत्यकार मे ते नवकार मंत्र- मनने विषे स्मरण करो ॥६६॥ एवं गुरु वइ॥ पचंताराहणं निसुणिऊणं॥ वोसि सहपावो॥ तदेव आसेवए एसो ॥६७॥ एग्रमण करनार - ए प्रकारे गुरुए उपदेशेली छेल्ली आराधना सांभलीने सर्व पाप जेणे बोसराव्युं छे एवो पुरुष तथा प्रकारे सेवे ॥१७॥ 413501051sesire
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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