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________________ आहारना कारणे करी ( तंदुलीमा) बच्छी सावनी नरक मुमिर जाय. माटे सचित आहार बने करीने पण प्रार्थना करवा योग्य नयी ॥ ५१ ॥ पु िक परिकम्मो | अनिभाणो कहिकण मइ बुद्धिं ॥ पहा मला कमान ॥ तच्चो मरण परिचामि ॥ ५२ ॥ प्रथम अभ्यास कर्यो जेथे, अबै निवाणा राति पय त मति भने बुद्धियीज विनारीने पछी नाश कर्या के कषाय जेणे, एवो छतो जल्दी मरण अंगीकार करं ॥ ५२ ॥ प्रक्क चिरजातिय ॥ ते पुरिसा मरण देस कालमि ॥ पुर्व कप कम्म परिना लांबा बखत पाछा पछे (दुर्मति पति ते माटे पानी के हेतु सहित करो ॥ ५४ ॥ ३ ।। विवाका (पूर्व करेला कर्मोंना प्रभावे क॥ ५३ सम्हा चंदग विधं ॥ सकारणं उस पुस्ति ॥ जीवो अविरहि गुणो ॥ कारक मागमिं ए४ ॥ मार्ग साधना, माटे पोतानो आत्मा ज्ञानादि गुण STE SUSTANUENSTRIEKSTASSIS
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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