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________________ परीकहे मतवालो ॥ मा ॥१॥ शंकर लागे ब्रह्मा पाय, कर जोडी कह्यो जग राय ॥ मा० ॥ में पापीए कीधो बाध, खीमा करी खमजो अपराध ॥मा ॥२॥ मुज पापीनी हत्या जाय, खामि ते कहेजो उपाय ॥ मा० ॥ खर कपाल पमे वली जेम, वचन नाखजो ब्रह्मा तेम ॥ मा० ॥३॥ कोमल वचने कृपा तव कीध, कोप तजी शिखामण, दीध ॥मा॥ ब्रह्मा कहे सांजलरे ईश, पापी मोटो तुं जगदीशमा॥॥ हत्या माह। श्रा उतरे एम, वचन कहुं ते करे तुं तेम ॥मा॥जटाजूट माथे हर राखो, मसाण राख विलेपन राखोमा॥नर कपाल तणो रचो दार, अस्थि रोम मांही गुंथो फारमा कोटे घालो ते वलीमाल, देखीती मोटी विकराल ॥माणा॥माक ने किन्नरी वा अपार, नांग धतुरो खार्ड फार ॥मा नगन थ हीमोगामो गाम, निक्षा मागो गमो गम | मा॥॥ वरणावरण म करशो नेद, सघले लेजो निदा छेद ॥मा॥मुज कपाल माही घालोजेह, रात दिवस तमे जमजो तेह ॥माणाणा एणी परे हत्या जाशे तारी, ए शिखामण सारी मा॥ रुधिर देश को पुरशे कपाल, खर मस्तक पडशे तत्काल ॥मा॥ए॥ ब्रह्मा। वचन सुणी तव ईश, जोगी रूप धयु जगदीश ॥ मा० ॥कपालीक धरीयो तेह नाम, रात दिवस हीमे गामो गाम ॥मा॥१॥ एम करतां गयो घणो काल, मसाण नूमि सेवी ॥४ ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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