SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजी थर, गलो घर को जोय ॥ तेमां ग उतावली, बेहु जण मलीयां सोय ॥७॥ वैकुंठे संतोषी घj, राधा जोमी हाथ ॥ कहे स्वामी मुज जाण यो, रीस करशे मुज नाथ ॥ ॥ काम काज घरमा घणां, बुच्चो मुज जरतार ॥ क्रोधी गाल थापे घणी, जो जाणे व्यभिचार ॥ ए ॥ राते मुज घर थावजो, गुप्त करी तुम देह ॥ घर निशानी सौ कही, पोहोती निज घर तेह ॥ १० ॥ ढाल नवमी. कीसके चेले कीसके पूत, आतम एकीला हे अवधूत-ए देशी-(राग बंगाली.) विरहानल वाध्यो गोविंद, सघले देखे राधा वृंद ॥मन मान ले ॥ तालावेलि' टलवले तन, कोड सूरज बसे आकाशे मन ॥ म॥१॥ शीत लागे जे अगनी समान, एम करतां श्राथमीयो जाण ॥ म ॥ रात पमी दुवो अंधकार, गोविंद पहोंतो गोवालपी बार ॥ म्॥२॥ तस्करनी परे श्राव्या देव, छार दीधां दीगं ततखेव ॥ म॥ वैकुंठनाथ विमासे ताम, लोक सुता ने एणे गम ॥ म ॥३॥ बोलावीश तो जागशे लोक, चाम चोरी पमशे मुज फोक ॥ मण॥ मौन धरूं तो काम न होय, १ एकज ध्यान.
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy