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________________ मजूस एक मादरी, तुम पेसो ते मांहिं ॥ गम न पडे कोने कशी, मौन करी रहो त्यांहिं ॥ ७ ॥प्रोहीतने मांहिं घालीयो, यंत्र जमीने झार ॥ तलार घरमां तेमीयो, बोलावे तेणी वार ॥ ७॥ खातां पीतां खांतशु, दोय पोहोर ग रात ॥ त्रीजा पोहोरे श्रावीयो, सचीव थर रखियात ॥ ए॥ बीन्यो कोटवाल एम कहे, मुज सांतो को गम ॥ मुजने देखे जो हां, न रहे माहरी माम ॥१०॥ बीजे खाने घालीयो, सची|वने लीधो मांय ॥गीत गान करती थकी,सचीव तणो गुण गाय ॥११॥ चोथो पोहोर जव श्रावीयो, राजा बोल्यो वाण ॥कमाम उघाडो उतावलां, देखे को अजाण ॥१२॥y सचीवे सादज सांजल्यो, थरथर ध्रुजे काय ॥ नारी जणी बोले तिहां, मुज सांतो को गय ॥ १३ ॥ त्रीजे खाने घालीयो, राजा लीधो मांहिं ॥ नयण बाण लगामता, रीजवे राजा तांहिं ॥ १५ ॥ चार घमी रात पाडली, श्रावी पामोसण नार ॥ कागल हाथमां लेश्करी, निपट करती पोकार ॥ १५ ॥ ढाल आठमी. करम परीक्षा करण कुमर चल्यो रे-ए देशी. उठ उठ. रे रांग तुं सूझ रहीरे, मूळ तुज जरतार ॥ कागल श्राव्योरे श्राज परछी-1
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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