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________________ धरी, वेचण श्रावी ताम ॥२॥ दही खूध जाजन जरी, श्रावी केशव पास ॥ श्रचरिज पाम्या रूपथी, ते वितक सुण तास ॥३॥कामे पीमाणो घणो, विरदानल संताप ॥श्रवर नारी ते नवि गमे, लेह लागी ते आप ॥४॥ सोल सहस्र गोपी तणो, त्यां उतार्यों मोह ॥ राधा उपर श्रति घणो, पाम्यो त्यां व्यामोह ॥ ५ ॥ सुण राधा गोवालणी, तुजशुंरंग अपार ॥ अवर नार मुज नविगमे, तुज सम को नहीं संसार ॥६॥ दाण थाप मटुकी तणुं, सांजल मारी वाण ॥ प्रेम धरो श्रमशुं तमे, म करो खेंचा ताण ॥ ७॥ तव बोली राधा तिहां, सांजल राजा राम ॥ पुरुषोत्तम ए वातमां, किम सीजे तुम काम ॥ ॥ नारायण सुर नर कहे, अयुक्त बोलो श्राज ॥ मोटा पण खोटा हिये, राखो तुमारी लाज ॥ ए॥ नीच जाति श्राहीरनी, जोला अमे नरवाम ॥ तेहने एवं|| कम घटे, पेखी किम पमो खाम ॥ १०॥ ढाल सातमी. कर जोमी कामनी जपे, कहेतां थरहर काया कंपे-ए देशी. सांनलो धर्मशास्त्र विचार, ए नहीं उत्तम श्राचार ॥ परनारी लंपट नर जेह, मरीने उरगति जाये तेह ॥ हो लाल ॥ सुणजो साजन सहुको ॥ ए श्रांकणी ॥१॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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