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________________ | खंग र मिपरितुम मित्रनो, जाशे मन संदेह ॥जैनधरम सादर करी, पालशे तव सही तेह॥ वाणी मुनिनी सांजली, हरख्यो हयमां मांय ॥ प्रणमीने चाल्यो तुरत, बेसी विमान ॥४॥ उबांय ॥ ॥ मन चिंता करतो घणी, बंधव मलशे कयांहिं ॥ जोवाने फिरतो फिरे. देश विदेशज त्यांहिं ॥ १० ॥ एम करतां आवी मल्यो, पूर्वी कुशलनी वात ॥ मोहे विंध्या बे जणा, थया हरख सुख सात ॥ ११॥ ढाल ३ जी. फतमल पाणीमा गश्ती तलाव, लश्कर आयो हामा रायरो-ए देशी. वीरा मारा पवनवेग कहे वात, श्राज मुने हरख वधामणा ॥ वीरा मारा जोयां में गमोगम, साजन पूच्या में तुम तणा ॥१॥ वीरा मारा आवी मल्या मुने श्राज, एता दिवस तुमे क्या हता ॥ वीरा कहो धुरथी ते वात, कीहां जश्श्राव्या थया बता॥ वीरा ॥२॥ वीरा मनोवेग कहे तव एम, देश विदेशे ढुं जन्यो।वीरा कौतिक दीगं अनेक, अढीछीप माहे हुँ रम्यो । वी० ॥३॥ वीरा काश्मीर अने गुजरात, गौम चौड सोहामणां ॥ वीरा नोट बाजीर सोजीर, कुंकण कलिंग कनोज तणां ॥वी॥४॥ वीरा मलबार सोरठ हालार, हीरंजज मुलतान जाणीए ॥ वीरा अंग वंग कुल्यंग ति ॥४॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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