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________________ धर्मपरी० ३५ एम कही बिहु जण मल्यां, जोगवे जोग विलास ॥ रात दिवस व्यभिचारीखा, धन विलसे करे हांस ॥ ७ ॥ वर्ष एक एणी परे गयो, पाप करंतां ते ॥ माधवनो श्रागज हुवो, दिन च श्रावे गेह ॥ ८ ॥ जारे श्रावतो जाणीने, वाही कुरंगी नार ॥ घूरत धन लेइ गयो, ठगली कीध अपार ॥ ए ॥ कटकी करीने यावीयो, माधव मोह धरंत ॥ श्रागलथी नर मोकल्यो, कुरंगी श्राव्यो कंत ॥ १० ॥ ढाल चोथी. राणकपुर रलीयामरे लाल - ए देशी. जोजन जलां वेगे करोरेलाल, मूख्या बे जरतार ॥ सनेहीरे ॥ तेणे वचने जांखी थइरे लाल, चिंता उपनी अपार ॥ सनेहीरे ॥ सूरिजन सांजलजो कथारे लाल ॥ ए कणी ॥ १ ॥ सुंदरीने मंदिर गइरे लाल, बेठी करीने प्रणाम || स० ॥ वमी बेहेन सुणो विनतिरे लाल, घरे श्राव्या श्रापणा स्वाम ॥ स०॥ सू० ॥२॥ तुं बाइ वमी जामनीरे लाल, हुं नानी ढुं तेह || स० ॥ जोजन करावो जरतारनेरे लाल, राखो वमपण | देह || स० ॥ सू० ॥ ३ ॥ तव सुंदरी बोली इसुंरे लाल, मुजशुं प्रीत नहीं कंत ॥ स० ॥ जोजन नहीं करे मुज घरेरे लाल, कुरंगी सुण संत ॥ स०॥ सू० ॥ ४ ॥ जमाडुं खंग २ ॥ ३५ ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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