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________________ धर्मपरी० ॥ ३३ ॥ खरुं सही तेहजी ॥ जा० ॥ श्रतिमोही नर एक मूढजी ॥ जा०॥ तेहनी कथा चित्त धरो गूढजी ॥१८॥ बीजा खंडनी ढाल कही बीजीजी ॥जा० ॥ श्रोता सहु कहेजो जीजीजी ॥ जा० ॥ रंगविजय कविनो शिष्यजी ॥ जा० ॥ नेमविजय प्रणमे निशदिशजी ॥ १ ॥ उदा. विप्रवचन तव बोलीया, सुबरे जील सुजाण ॥ कथा कहो तिमोही तणी, सांजलवा सावधान ॥ १ ॥ मनोवेग तव बोलीयो, ब्राह्मण सुखजो सार ॥ कथा कहुं हुं रुयमी, विनोद तो चंडार ॥ २ ॥ नमीयाम देशमां निरमली, नर्मदा नदी वहे सार ॥ दक्षिण तट तिहां गामको, शामंत नाम अपार ॥ ३ ॥ लोक वसे तिहां रुयमा, धर्म करे अभिराम ॥ माधव मेदेतो अति जलो, अधिकारी ति गाम ॥ ४ ॥ सुंदरी नारी तेह तणी, शीयलवंत गुणवंत ॥ ते बेदु जणथी पुत्र दुवो, सोनपाल नाम महंत ॥ ५ ॥ पुत्र प्रसुत हुवा पढी, माधव न गमे तेह ॥ सुंदरी रूप शुं कीजीए, जोवन | नातुं देह ॥ ६ ॥ शामंत गाम वसुदत्त वसे, सुरंगी नार सुचंग ॥ कुरंगी पुत्री ते तणी, रूप कला सुरंग ॥ ७ ॥ माधवे धन आपी घणुं, परणी कुरंगी नार ॥ जोवनजर रली श्रामणी, तेहशुं नेद अपार ॥ ८ ॥ काम कुतूहल करे घणुं, इंडी लंपट तेह ॥ खंग १ ॥ ३३ ।
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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