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________________ बेठा एकता, बहु बंधाणो नेह || नित्य घावे एकेकने, फरी फरीने गेह ॥ ८ ॥ वातो विविध प्रकारनी, करता महोमद ॥ धर्म वखाणे आपणो, अन्यो अन्य उछाह ॥ ॥ ढाल बीजी. रे जीवमा दीधानां फल जोय - ए देशी. मनोवेग कढे सांजलोजी, जैनधरम जग सार ॥ केवली जाषित निरमलोजी, उतारे। जव पार रे जाइ ॥ धरम समो नहीं कोय ॥ ए की ॥ १ ॥ दान शीयल तप जावनाजी, धर्मना चार प्रकार ॥ जीवदया जतने करीजी, जे पाले नरनाररे ॥ जा० ध० ॥ २ ॥ सुक्ष्म बादर जाणीएजी, त्रस थावर दोय जीव ॥ सन्नी असन्नीजी, संमुर्छिम गर्जज हीवरे ॥ जा० ध० ॥ ३ ॥ अनेक भेद बे धर्मनाजी, कहेतां नावे पार ॥ तव पवनवेग बोलीजी, हुं नवी जाणुं लगाररे ॥ जा० ध० ॥ ४ ॥ त्यांथी बे जण आवी आजी, पुष्पदंत गुरु पास ॥ अध्यारु बे यादिनोजी, छात्र जणावे तासरे ॥ जा० ध० ॥ ५ ॥ जणवा बेठा बे जणाजी, ज्योतिष वैदक सार ॥ मंत्र मंत्र जमी मूलीजी, वेद शास्त्र पाररे ॥ जा० ध० ॥ ६ ॥ जणी गणी प्रौढा थयाजी, पाम्या परम यानंद ॥ मनोवेग श्रावक जलोजी, पवनवेग मिथ्या कंदरे ॥ जा० ध० ॥ ७ ॥ विमाने बेसी दोय
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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