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________________ र्मिपरी उपनी मनमा घणीराज॥ तु ॥१३॥ जगन मांड्या हवे तेणे क्षिप्र राज, अनेक तेमा व्या त्यां विप्र राज ॥ तु० ॥ होम हुताशन परजले राज, पुण्यदान दे जे नर मले राज Gतु ॥ १४ ॥ जाग नवाणुं थया जब पूरा राज, कंप्युं इंसासन थर सनुरा राज alu तु० ॥ झाने करी विचार्यु जेह राज, मुज पदवी पेशे सही तेह राज ॥ तु ॥१५॥ विष्णु मंदिर मथवा गयो राज, सांजल गोविंद वात उनयो राज ॥तु॥ बलि राजा जगन बहु करे राज, मुज पदवी तणो घातज हरे राज ॥तु०॥१६॥ कूम रचो जगनाथ | देव राज, नाश करो दैत्य तणो ततखेव राज तु०॥बलिने बलो करीने उपाय राज, श्राश पुरो मनोरथ थाय राज ॥ तु० ॥१७॥ कृपा करी बोल्या तव हरि राज, जाउँ तुमे थापणे उगम फरी राज ॥तु॥ निज पदवी जोगवो जाइ राज, अमे करशुं काम तुम सा राज ॥ तु ॥ १७ ॥ रच्यो दामोदरे विचार राज, काश्यप ऋषि तस नार राज ॥ तु० ॥ श्रादिति नामे कही नार राज, तेहनी कूखे लीयो अवतार राज|| ॥तु॥१५॥ जाणीए त्रेतायुग मांही राज, वामन रूप धरी उबांही राज ॥ तु॥ |पहेले खंभे बारमी ढाल राज, नेमविजय कहे तेणे ताल राज ॥ तु॥२०॥ H॥१०
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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