SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Ke ज० ॥ ६॥ गत श्रागत सह जीवनी, देखे लोकालोक ॥ जिन देखे सवि वस्तुने, केवलज्ञाने श्रलोक ॥ जण ॥॥ मूरत श्री जिनराजनी, समतारस भंडार ॥ शीतल नयण सोहामणां, नहीं वांक लगार ॥ ज० ॥ ॥ हसित वदन हरखे हीयो, देखी श्री जिनराय ॥ सुंदर बबीप्रजु देहनी, शोना वरणी न जाय ॥ज०॥ ए॥अवर तणी एहवी बबी, कीहाए न दीसंत ॥ देवतत्त्व एम जाणीए, सहु सुणजो संत ॥ ज० ॥१०॥ नवमा खंड तणी कही, ढाल बीजी ए सार ॥ रंगविजय शिष्य नेमने, होजो जयजयकार ॥ ज० ॥ ११ ॥ ढाल त्रीजी. यत्तनी देशी. श्री जिनवर प्रवचन जाख्या, मांही कुगुरु तणा गुण दाख्या ॥ पासबादिक पंचेश्, |पाप श्रमण कह्या पंचे॥ १ ॥ गृहीनां मंदिरथी श्राणी, आहार करे नात पाणी ॥ सुश्बंधे जे निशदिस, मरमादि विसवा वीस ॥२॥क्रिया न करे केणे वार, पमिकमणुं सांज सवार॥न करे सूत्र अरथ सफाय, विकथा करतां दिन जाय ॥३॥ घृत दूध दहीं अप्रमाण, खाये न करे पच्चस्काण ॥ज्ञान दर्शन ने चारित्र, मूकी दीधां ते सुपवित्र॥४॥सु. ॥१६६
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy