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________________ चारण मुनिए अवधे करीरे, कडं गंधर्व सरूप ॥ ज० ॥ तुरंग विना सुरदेवनेरे, वेदन करशे नूप ॥ ज० वा ॥ २७ ॥ श्रापमा खंड तणी कहीरे, दशमी ढाल रसाल ॥ जगाला ॥ रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमविजय उजमाल ॥ ज० वा ॥ १५ ॥ उदा. | सूतो उठ्यो शेठजी, हय नवि दीगे तेथ ॥ अश्वपालने पूर्वीयु, कोण जाणे गयो । केथ ॥१॥ उगी गयो ते धर्म ठग, श्यो उत्तर नृप देश ॥धर्म करंतां एडवो, श्रावी| पमीयो क्लेश ॥२॥ टाले श्री जगवंतजी, मरणांतग उवसग्ग ॥ शरण करी जिन-1 धर्मनो, चैत्य कर्यों का स्सग्ग ॥३॥ चुगले जश् चाडी करी, कह्यो अश्व उदंत ॥ घर, बुंटी नूपति कहे, करो एहनो अंत ॥४॥चाकर चैत्ये दोमीया, कर साही करवाल ॥y देरा मांदी पेसतां, देवे थंच्या ततकाल ॥ ५॥ सेनानी नृप मूकीयो, कहेवा तेह हे. Vवाल ॥ कोपी सेना सज करी, चमी थाव्यो नूपाल ॥६॥ जूप विना सहु थंजीया, चिंते राजा चित्त ॥ कोई उपाय इसो होये, रहे रतन ने मित ॥ ७॥ विद्याधर जिनवर नमी, सामी साहाय्य निमित्त ॥ श्रश्व वेश्ने श्रावीया, चंपापुरी तुरत ॥ ७ ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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