SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेंपरी १६१॥ ते देखावेरे, अश्व युगल लो जे दाय श्रावेरे ॥१॥ उबला दीग ते बे लीधारे, समुनदत्तनां वांबित सिधारे॥आठमा खंडनी नवमी ढालरे, नेमविजये कही उजमालरे ॥१३॥ उदा. अशोक कदेरे मूढ तुं, आज कालमां प्राण ॥ मूके एहवा अश्वने, कां से ए अंध जाण ॥१॥ कनकाचरण अलंकर्या, माता उंचा वाह ॥ बीजा ले तुं बापडा, बांमी| एहनी चाह ॥२॥ समुदत्त कहे एणे सयु, नहीं अवरशुं काम ॥ पासे उना ते कहे, जम पुराग्रही नाम ॥३॥हित उपदेश एहने विषे, दीधो निष्फल थाय ॥ मूरखनु औषध नहीं, कहे महा कविराय ॥४॥ यतः- मूर्खस्य षड्चिह्नानि । गर्व पुर्वचनं मुखम्॥ विवादी विरोधी च । कृत्याकृत्यं न मन्यते ॥१॥ मुज पुत्री श्रासक्त , कह्यो हशे एह नेद ॥ गहन चरित्र ने नारीनो, किसो करूं मन खेद ॥ ५॥ जो ए अश्व श्रापुं नहीं, थाय प्रतिज्ञा नंग ॥ कमलश्री परणावीने, दीधा तेह तुरंग ॥६॥ ६१।
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy