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________________ परी० । १५३ ॥ | दा० ॥ ७ ॥ सोमशर्मा मंत्री श्वरे, रा० कथा सुणी नीम लीध हो || लोहायुध धरूं नहीं, रा० काठ कृपाज कीध हो ॥ दा० ॥ ८ ॥ पिशुने काठ कृपापनी, रा० भूपतिने वात ते जाषी हो | सजा मांहे नृप बेसीने, रा० छासिनी वात प्रकाशी | हो || दा० ॥ ॥ खड्ग जोइ क्षत्रिय तणां, रा० मंत्रीनो असि माग्यो हो ॥ खल विलसित जाएयुं खरु, रा० जरम सही मुज जाग्यो हो ॥ दा० ॥ १० ॥ यतः - परवादे दशवदनः । पररंध्र निरीक्षणे सहस्राक्षः ॥ सधृती वित्तहरणे । बाहुसहस्रार्जुन पिशुनः ॥ १ ॥ साचो धरम जो माहरो, रा० तो लोहमय असि थाजो हो ॥ एम कही राजाने दीयो, रा० संकट डूरे जाजो हो ॥ दा० ॥ ११ ॥ कोश थकी राये काढी, रा० लोह फलदलतो दीठ हो ॥ खल साहमुं जोइ कहे, रा० केम जूटुं कयुं धीठ हो ॥दा ॥ १२ ॥ यतः - सर्वदेवमयो राजा । वदंति विबुधा जनाः ॥ तस्मात्तत्पुरो नैव । वदेन्मृषा कथंचन ॥ १ ॥ I कालो चुगलने नृप वदे, रा० तव मंत्री एम श्राखे हो ॥ कोप प्रभुजी मत करो, रा० ए जूनुं नवि जाखे हो || दा० ॥ १३ ॥ में जिनधर्मज आदर्यो, रा० जाण्यो लोहनो ཁྐྲི་ ॥ १५३
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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