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________________ धर्मपरी परधान ॥ ७॥ कन्या कपिला धेनु वली, महादान दश एह ॥ पण अतिशय दीगे | नहीं, शुं कारण जे तेह ॥ ७॥ ।१५१॥ ढाल त्रीजी. नणदलनी देशी. मुनिवर कहे महेता सुणो, असंजति एह अजाण ॥ शुज मन ॥ कायनी हिंसा करे, तेणे फल नहीं मन आण ॥ शु मु॥ १॥ ए श्रांकणी ॥ उखर खेत्रे वावीयो, जेम निष्फल थाये बीज ॥ शु० ॥ तेम दीधुं कुपात्रने, ते पण गणो तिमहीज ॥ शु| मु॥५॥ ज्ञानवंत क्रिया करे, ते जाणीजे सुपात्र ॥ शु॥तेहने दीधुं बहु फले, तप| IN करे निरमल गात्र ॥ शुग मु० ॥३॥ ___ यतः-एकवापीजलं सिक्त-माने मधुरतां व्रजेत् । ____निंबे च कटुतां याति । पात्रापात्र नियोजनात् ॥ १॥ IN पूजे मंत्री मुनि प्रते, चित्त कोमल नहीं धीठ॥शु०॥माहारी परे बीजे केणे, दान १५१ तणां फल दी ॥ शु० मु० ॥ ४॥ विश्वनूति ब्राह्मण तणी, कथा कहे मुनिराज ॥शु०॥ देश वैराट दक्षिण दिशे, सोमप्रन तिहां राज ॥शु मु०॥५॥ ब्राह्मणने माने घj,
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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