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धर्मपरी०
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ढाल गरमी.
दवीला जादव व करी हरीय मनावीए हो लाल-ए देशी. जयसेनाए पारीयोरे लाल, पोसह व्रत परजातरे ॥ शासनदेवी ॥ मूइ दीठी सुंदरीरे लाल, हा केणे कीधी घातरे ॥ शा० ॥ सार करो मुज सामनीरे लाल ॥ ए श्रकणी ॥ १ ॥ साच जूठ कोण जाणशेरे लाल, शोक्या तणो व्यवहाररे ॥शा० ॥ सहु कदेशे मारी होशेरे लाल, कलंक तो अवताररे ॥ शा० सा० ॥ ॥ २॥ शासनसुरी याराधवारे लाल, काजस्सग्ग कीधो साररे ॥ शा० ॥ परगट यइ देवी कहेरे लाल, म करो दुःख लगाररे ॥ शा० सा० ॥ ३ ॥ बंधूसरी दरखित थकीरे लाल, जमाइने घर जायरे ॥ शा० ॥ जाएयुं जयसेना मूइ हशेरे लाल, सुंदरी देखी दुःख थायरे ॥ शा० सा० ॥ ४ ॥ रोती मायुं कूटतीरे लाल, आक्रंद करती अपाररे ॥ शा० ॥ जयसेनाए मारी सुंदरीरे लाल, जइ पोकारी दरवाररे ॥ शा० सा० ॥ ५ ॥ जयसेनाने तेमवारे लाल, माणस मूके रायरे ॥ शा० ॥ तव शासन रखवालीकारे लाल, जोगीने उपायरे ॥ शा० सा० ॥ ६ ॥ जयसेना मोटी सतीरे लाल, एहवां न करे कामरे ॥ शा० ॥ राय आगल जोगी कहेरे लाल, सोने न लागे श्यामरे ॥ शा० सा० ॥ ७ ॥ बंधूसरीए मु
खं
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