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________________ एणे माहरी पुरगति वारी ॥ मारा गुरुने ए फुःख देशे, छारे रह्यो दंम धरीने वेषे| ए॥ एटले जण राजाना श्राव्या, हांक्या पेसण मांहि नव पाव्या ॥ रोष करी हणवा ते सुंड्या, देवे निज दंमे ते फुड्या ॥ १० ॥ पड़ी नृपे मूक्यो कोटवाल, तेहने पण सुरे देश गाल ॥ दंडे हणीने वली ते पाड्यो, नूप सुणीने अति घणुं त्राड्यो । ||११॥ पोते बल वाहन ले चाख्यो, जव नजरे ते देवे निहाख्यो ॥ मारी हांक कटक सवी त्रागे, प्राण वेश्ने राजा नागे ॥ १२ ॥ एकले सकल नगर एम जीत्युं, मतिसागर मंत्रीसरे चिंत्यु ॥ माणस रूप नहीं सुण नूप, ए तो दीसे देव सरूप ॥ १३ ॥ धूप देप बल बाकुल दीधो, विनति करीने परगट कीधो ॥ केणे अपराध को तुज खामि, जाखो नाम कहुं शीर नामी ॥ १४ ॥ अविवेक ए राजा ताहारो, सऊन शिरोमण धर्मगुरु माहारो ॥ जिनदत्त शेउने निरापराध, करवा मांमी अति श्राबाध ॥ १५ ॥ तेणे ढुं नगर लोकने मारुं, माहारा गुरुनी पीडा वारु ॥ तुम गुरु शेठ थयो |केम देव, पूरव नव दाख्यो तव देव ॥ १६ ॥ धन्य तुं देव मंत्रीसर बोले, जन्मांतर उपगारी तुं तोले ॥ पदेली वय पाणी जे पीधुं, अंतकाले श्रीफल ते दी● ॥ १७ ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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