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________________ र्मिपरी खंग ।१४१॥ ररे ॥॥ कांश्क अचरिज जोश्एरे, जमीए नगर मोजाररे ॥॥॥ नमतां एकण चाचरेरे, दीठी माणस बांहरे ॥ प० ॥ पुरुष नारी दीसे नहींरे, अचरिज थयुं मन मांहीरे ॥ ५० ॥ ११ ॥ कहो प्रधान दीसे किशुरे, लोहषुरो प्रनु चोररे ॥ १०॥अंजन बल अदृश्य थरे, नगर पडावे सोररे ॥ १० ॥१॥जोइए ए किहां जाय डेरे, कौतके | चाल्या पीठरे ॥ प० ॥ अर्हदास घर आंगणेरे, वडे चमी बेठो धीरे ॥ प० ॥ ॥ १३॥ अलद थका बेहु जणारे, आवी बेग हेरे ॥ प० ॥ एहवे कुंदलता कहेरे, सुणो वयण मुज शेठरे ॥ प० ॥ १४ ॥ महोठव मूकी कौमुदीरे, देव पूजादिक कर्मरे प० ॥मांमी बेग मेहेलमारे, केणे लगाड्यो नमरे॥१०॥ १५॥परलोकार्थी कीजी-IN एरे, ए करणी सुणी वामरे ॥ प॥केणे दीगे परलोकनेरे, इहलोके सुख कामरे ॥ प० ॥ १६ ॥ परलोके सही पामीएरे, धर्म थकी सुख लहरे ॥ ५० ॥ इहलोके फल एहवुरे, में दी प्रत्यक्षरे ॥ १० ॥ १७ ॥ कांता ते तुजने कहुँरे, धर्म तणां अवदातरे ॥ प० ॥ खेम सातमानी ए थश्रे, ढाल सातमी नेम विख्यातरे ॥ १० ॥१७॥ उहा. श्णहीज नगरे राजवी, थयो प्रसेनजीत नाम ॥ तास पुत्र राजा अजे, ॥ १४१॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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