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________________ खंग? १४॥ परीमस्यो विद्यारथी ताम॥२॥जूतमति जणी लख्या, श्रावी लाग्यों पाय ॥ विद्यारथी INहुं तुम तणो, तुम पंमित महाराज ॥३॥ अपराधी हुँ ताहरो, गुनोद करजो माफ ॥ पगे लागवा श्रावी, मारा को माबाप ॥४॥पापी में तुम नारीनु, हरण करीयुं श्रांहीं ॥ श्रावीने यहां रह्यो, देजो मुजने बांहीं ॥५॥ नूतमति सुणीने कहे, दीसे दासी-| पुत्र ॥ कुण तुं क्यांथी श्रावी, धूरत दीसे कुंत्र ॥६॥बोले खोटुं तुं सही, ब्रह्मचारी श्रम नार॥ देवदत्त विद्यारथी, एहनो नहीं श्राचार ॥७॥ अस्थि डे ए बेहुनां, कावम मांही जेह ॥ गंगाजी मांहे जश्, तरतां मेलीश तेद ॥ ॥ तेमी थाण्यो घर नणी, देवदत्त कुमार ॥ ज्ञानी बेठो चिंतवे, ए कोण दीसेनार ॥ए॥ जगनदत्ता मन चिंतवे, जानी श्राव्यो पास ॥ पगे लागीने विनवे, अपराध खमजो वाम ॥ १० ॥ ढाल नवमी. कपूर होवे अति उजलो रे-ए देशी. ___ कामनी कहे खामी सुणोरे, संजालो पूरव प्रीत ॥ वमपणे परएया मुजनेरे, राखो| तेहीज रीतरे॥साजन सांजलजो सहु कोय॥ए श्रांकणी ॥१॥ कोपे जानी कहे तिहारे, लातुं केहेनी कहे रांड॥ था गाम तणां लोक एहवारे, फोक बोले मांग मांगरे ॥सा ॥ १४ ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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