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________________ नवि पासु तास ॥ २॥ सरस कथा में सांजली, लाग्यो तेणे मन्न ॥ प्रनु पासे मुज श्रावतां, अधिको श्रव्यो दन्न ॥३॥ ढाल बही. में तोजी खणावी वावडी-ए देशी. थाज कथा में सांजली, सुणजो सहु सावधानरे; राज॥ गजपुर नयर कुरु देशमां, नर कुबेर नयर समानरे ॥ राणाए आं०॥१॥राज करे तिहां रंगशु, नामे सुजन नरिंदरे ॥राण ॥ वमवमा राणा राजीया, वांदे चरण थरिवृंदरे ॥रा था० ॥॥ परितापे रवि सारिखो, को न खंडे आणरे ॥ रा ॥ शीषे फुल जेम सहु धरे, दिन दिन वधते वानरे ॥रा था ॥३॥ क्रीडा वानर तेहना, निरजय नगर भ्रमंतरे ॥राणा उपजव अति घणो करे, नवि को वरजंतरे ॥राण था ॥४॥ विविध जातिनां वृक्ष तिहां, वेल अनेक प्रकाररे॥रा॥पान फुल फले जयु, उद्यान ले सुखकाररे॥रा॥ श्रा ॥ ५॥ वनथी श्रावी वांदरा, तामी पी थया मत्तवासरे। राणा रक्षके वार्या नवि रहे, तोडे तरुवर मालरे ॥ रा० श्रा० ॥६॥ वनपालक आवी कहे, विनतमी अव-I धारोरे ॥ रा॥बाग विणासे वांदरा, वनचर वेगे वारोरे ॥ रा० आ ॥७॥ क्रीमा
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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