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________________ धमपरा शेष ॥ सु० ॥१७॥ कीधी फूल तणी तिहां वृष्टि, धरापतिने थइ सुख सृष्टि ॥ सु० सातमा खमनी चोथी ढाल, नेमविजय कहे रंग रसाल ॥ सु० ॥ १७ ॥ ॥१३॥ meanTAIN आरक्षक वली श्रावी, चोथे दिवस अकाल ॥ रे नवि लाव्यो चोरने, एम पूरे नरपाल ॥१॥ मारग माहीं श्रावतां, बाज अपूरव नाथ ॥ कथा एक में सांजली, सहु सांजलजो साथ ॥२॥ ढाल पांचमी. रे जाया तुज विण घडीय न जाय-ए देशी. वन मांहीं एक हरणलीजी, निज बालकने संग ॥ हरी चरे निकरण तणांजी, जल पीए मनरंग ॥ सुजोधन सांजलजो मुज वात, मत करजो व्याघात॥सुजोधन ए श्रांकणी ॥१॥ वनने पासे ढुंकडंजी, नयर वसे मनोहार ॥ नयर तणा राजाननेजी, बहोला बाल कुमार ॥ सु० ॥२॥ आहेडे वन एकदाजी, जश्ने मांड्यो जाल ||॥१३७ वीजा मृग नाती गयाजी, पास पड्यो एक बाल ॥सु०॥३॥ कोश्क नृपना कुंवरनेजी, थाणीने ते दीध ॥ बीजाने रमवा नवि दीएजी, तेणे सघले रढ बीध ॥ सु॥४॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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