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________________ धर्मपरी० ॥ १३५ ॥ बुट तपो उपायरे ॥ क० ॥ ७ ॥ जोवन मद मतवाला मुंरख जे, नवि मान्युं मुज वयपरे ॥ तेह तणां फल ए बे प्रत्यक्ष, देखो आपणे नयपरे ॥ क० ॥ ८ ॥ - जाणे अथवा परमादे, कारज विषतुं संजालरे || पढे प्रयास होये विफल सघलो, जल गये बांधी पालरे || कु० ॥ ए ॥ दीन वचने बोले उ दादाजी, तुमे बो बुद्धिनिधानरे ॥ दया करी निज बालक उपरे, दीजे वंडित दानरे ॥ क० ॥ १० ॥ प्राण रहित सरीखा थइ रहेजो, सघले मानी शीखरे ॥ परजाते देखी ते पापीयो, चिंते जांगी जीखरे ॥ क० ॥ ११ ॥ हंस सकलने देवा नाखीया, उड्या ते समकालरे ॥ मान्युं वचन वमानुं तेमणे, पाम्या सुख विशालरे ॥ १२ ॥ गाथा -- - दीहकालंठीया जब, पायवे निरुवदवे । मुला उठीयावली, जायं सरणं उजयं ॥ १ ॥ गाथा ह की बेवडे हंसे, समजो राय मयालरे ॥ कथा पहेली संपूरण ए कही, समजो श्रोता दयालरे ॥ क० ॥ १३ ॥ सातमा खंड तणी ढाल त्रीजीए, समजाव्यो राय सुजापरे ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजय परमाणरे ॥ क० ॥ २४ ॥ खंग 9 ॥ १३५
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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