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________________ धर्मपरी० ॥ १२४ ॥ गयो तेह ॥ ० ॥ अनागत चोवीशीए जिन होशेरे, पंच कल्याणक गेह ॥ मा० ॥ ८ ॥ जैन रामायण मांही कहीरे, विस्तारपूर्वक कथा राम ॥ दधिमुख कथा तिहां जाणजोरे, बीजा अधिकार मांही ताम ॥ म० ॥ मा० ॥ ए ॥ ईश्वर लिंग तणी कथारे, बीजे अधिकारे कह्यो नेद ॥ म० ॥ जिनमत शिवमत बेहु तणेरे, ते जोइ करजो बेद ॥ म० ॥ मा० ॥ १० ॥ जरासंधनी उत्पत्ति सुणोरे, संखेपे कहुंरे विचार || म० ॥ मगध देश राजग्रहीरे, नृप हुवा संख्या न पार ॥ म० ॥ मा० ॥ ११ ॥ हरिवंशे मुनिसुव्रत दुवारे, तेहज अनुक्रमे जाण ॥ म० बृहद्रथ राजा रुयमोरे, श्रीमती राणी गुणखाण ॥ म० ॥ मा० ॥ १२ ॥ जरासंध सुत उपन्योरे, अरध चक्री तुमे एइ ॥ म० ॥ कालिंदी आदि करीरे, सोल सदस | गुण गेह ॥ म० ॥ मा० ॥ १३ ॥ कालयवन आदे करीरे, पुत्र हुवा महा शूर ॥ म० ॥ अश्व करि रथ सुजट जलारे, त्रिखंड लक्ष्मी जरपूर ॥ म० ॥ मा० ॥ १४ ॥ श्र विद्याधर प्रतिहरि, मूचर नवमो जरासंध ॥ म० ॥ कुरुक्षेत्रे संग्राम हुर्जरे, नारायो बेद्यो कंध ॥ ० ॥ मा० ॥ १५ ॥ त्रीजी पृथ्वी गया ते दोइरे, होशे तीर्थंकर | देव ॥ म० ॥ पवनवेग विचारजोरे, शास्त्र कयुं में संखेव ॥ म० ॥ मा० ॥ १६ ॥ म० ॥ म० ॥ खंग ॥ १२४
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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