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________________ १२१ ॥ 0 संजलाव्यो दशरथ तात, पुत्र एक दोय खंकज जात ॥ ६ ॥ बापे दीधी श्राज्ञा तेह, लेइ नाखो वनमां एह ॥ माताने तव उपन्यो नेह, जोर करी संधाड्यो देह ॥ ७ ॥ जरासंध परव्यो वली तेह, जोरे बंधाणो तेहज देह ॥ जरासंध ते नामज धर्यु, नारायणाशुं वेरज कयुं ॥ ८ ॥ सबल संग्रामे ते गुजार, शरीर मल्युं बे खंग अपार ॥ तेम मुज मायुं माहरे देह, एह वातनो नहीं संदेह ॥ ए ॥ अपर वली कहुं सांजलो वात, शास्त्र पुराणे तेह विख्यात ॥ ईश्वर मोटो सबलो देव, पारवती नारीशुं देव ॥ १० ॥ उमीयाने जोगवतां गयां, सहस वरस देवतानां थयां ॥ सुर सघलाने चिंता थाय, केम करीशुं आपण जाय ॥ ११ ॥ पुत्र उपजशे एहनो जेह, सबल संतापी | होशे तेह || देव दानवने करशे ताम, जगत् जगमशे ते महा पाप ॥ १२ ॥ तो आपण हवे करीए एम, जोग दिजोग उपाइए तेम ॥ देव मली विचार ए कीध, गोरी बांधवने आज्ञा दीध ॥ १३ ॥ विश्वानर तुमे विश्वना देव, सुर नर करे तुमारी | सेव ॥ पार्वतीना जाइ जणी, काज यावो सहु देवज तणी ॥ १४ ॥ ईश्वर जोग करो अंतराय, तो सहुने सुख दर्षज थाय ॥ अग्निदेव तेणे मान्यो बोल, उमीया ईश तिहां गयो निटोल ॥ १५ ॥ जइ खोंखारो बाहीर जाम, विघन उपन्युं वीर्य खलतां खंग ॥ १२१
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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