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धर्मपरी०
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जलायो ॥ द० ॥ १० ॥ तेहवे तिहां हाहाकार वरत्यो घणो, रामनी जीत जगति प्रसिद्धी | लक्ष्मण बिजीषण बेहु जेला मैली, नगरी लंका ततकाल लीधी ॥ ० ॥ ॥ ११ ॥ पाट थाप्यो बिजीषणने बक्षीसमां, त्रिकूट गढमे आण फेरी ॥ तेहवे राम ने लक्ष्मण बेदु जणे, तेमावी नारी सीताजी आप केरी ॥ द० ॥ १२ ॥ दंपती बेदु मव्यां दर्षमां सहु जल्या, बिजीषणे तिहां बहु जक्ति कीधी ॥ घणा दिवस रही रिद्ध समृद्धि लही, शीख दीधी वल्या पाज सिसि ॥ ०॥ १३ ॥ अनुक्रमे श्रावीया थंजणपासे देवले, मास चोमास रह्या तेह गमे ॥ पूजा प्रजावना मोछव कीधा घण्णा, थापना कीधी थंजणोपास नामे ॥ ५० ॥ १४ ॥ पांचमा खंग तणी ढाल नवमी जली, रंगविजय गणि शिष्य जाखी ॥ नेमविजय कहे श्रोता सहु सांजलो, रावण रायनी वात श्रखी ॥ द० ॥ १५ ॥
डुदा.
अनुक्रमे सीता नारीने, स्वकीय उदर मांय ॥ गर्न वाधे दिन दिन जलो, दश्डे हरख न माय ॥ १ ॥ एक दिन लक्ष्मण सीता बने, सूतां बे बे जण पास || लक्ष्मणने माता समी, सीता नारी तास ॥ २ ॥ निद्रावश सूतां थकां वस्त्र रहित थयां बेद ॥
खं थ
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