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________________ वायु पुत्र नोहे जीमडो राज, नोहे शक्रनो अर्जुन ॥ श्रश्वनीकुमारथी नहीं उपन्या राज, सहदेव नकुल बे धन ॥ मा० ॥ ११ ॥ अर्जुन नारी रुयमी राज, सती डुपदी जे सार ॥ मिथ्या वचन नवि मानीए राज, जे खोटां वे सार ॥ मा० ॥ १२॥ मय विद्याधर महीपति राज, मदनसुंदरी नार ॥ तस बेटी मंदोदरी राज, सती शिरो| मणि सार ॥ मा० ॥ १३ ॥ रावण रंगे परणी राज, मंदोदरी शुन नार ॥ इंद्रजित सुत उपन्यो राज, मोक्षगामी जवतार ॥ मा० ॥ १४ ॥ दशमी ढाल चोथा खंगनी राज, सांजलजो नरं नार ॥ रंग विजय शिष्य एम कहे राज, नेमने जयजयकार ॥ मा० ॥ १२५ ॥ उदा. मिथ्या वचन न मानीए, पवनवेग खगेश ॥ व्यासे महाजारत रच्यो, सत्य तो नहीं लेश ॥ १ ॥ ढाल गीयारमी. नदी जमुनाके तीर उमे दोय पंखीया - ए देशी. सांगलो जाइ वात जे वेद पुराणनी, व्यासे रच्यो ग्रंथ लाख ॥ सचाइ चुरणनी से न विचार्य, एम मूरख सहु लोकमां ॥ महाभारतनी वात करशे सहु फोकमां ॥ १ ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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