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________________ जाजो वली तुमे सार ॥ रूपवंत थइ विलसजो, दोजी कुंतीशुं घरबार ॥ सा० ॥ ॥ १५ ॥ नवमी ढाल चोथा खंमनी, होजी सांजलो बाल गोपाल ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, होजी नेमने मंगल माल ॥ सा० ॥ १६ ॥ डुदा. मुद्री लीधी रुडी, चाल्यो सुरीपुर वास ॥ अदृश्य रूप लेइ करी, गयो कुंती आवास ॥ १ ॥ काम कुतूहल करी रमे, कुंतीशुं करे वात ॥ रात्रि दिवस एम जोगवे, गया वासर सात ॥ २ ॥ पांशु कुमर निज घर गयो, गर्ज धर्यो कुंती कुमार ॥ सुना जननीए जाणीयो, प्रगट गर्न श्राकार ॥ ३ ॥ गुप्तपणे घरमां रही, पुत्र जयो विख्यात ॥ कुटुंब बेसी विचारीयुं, वाधशे अपक्षपात ॥ ४ ॥ मंजूस मांहीं घाली करी, मूक्यो जमुना मांहीं ॥ चंपापुरी गइ पाधरी, श्रादित्य राजा वे त्यांहीं ॥ ५ ॥ ढाल दशमी. काली पीली वाली राज, वरसण लाग्यो मेह, साही बोरे, मारो कबहीक घर वे हो रंग लाय—ए देशी. निज मंदिर श्री करी राज, मजूस उधामी जाम || बालक दीठो रुपको राज,
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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